Monday, April 9, 2018

जब आप नहीं होंगे दफ्तर में तो...



कौशलेंद्र प्रपन्न
कुछ भी नहीं होगा। होना क्या है? कुछ लोगों के लिए आपका न होना होने से ज़्यादा मायने नहीं होगा। कुछ के लिए शायद सुबह की सांसों जैसी होगी। संभव है कुछ के लिए कल शाम की फाईल और सिस्टम की तरह होंगे आप। जिसे कल सटडाउन कर दिया गया। रोज़ दिन की नई चुनौतियां और कामों के बीच शायद ही कोई याद करे। करे भी तो शायद अच्छे के लिए कम आपकी कमियां और कुछ ख़राब आदतों के लिए याद किए जाएंगे। अगर विश्वास नहीं तो कभी कुछ दिनों के लिए आफिस के दूर होकर तो देखिए।
वैसे भी किसी के होने या न होने से दफ्तर जैसे जगहों को कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आप न होंगे तो कोई काम रूक जाएगा। या कुछ प्रोजेक्ट थम जाना है। हां बस अंतर इतना ही पड़ेगा कि आपकी सीट पर कोई और हुआ करेगा। होते ही आपकी तमाम चीजों को पहले ख़ारिज करेगा। आपने डिसिजन को ग़लत बताकर अपनी बात और राय को स्थापित करना चाहेगा। यदि ऐसा नहीं करेगा तो उसे कौन पूछेगा। हर बात पर सुनना होगा कि फला जी ऐसे करते थे। ऐसे कहा करते थे। क्या काम किया करते थे आदि। सो सबसे पहले आपकी सीट पर आने वाले/वाली आपके कामों को ख़ारिज़ करने में लगेंगे।
सच पूछिए तो आपही तो नहीं होंगे। आपकी आदतें कहीं न कहीं किसी न किसी कोने में या फिर किसी की स्मृतियां का हिस्स हुआ करेंगी। आप होंगे लेकिन कुछ ऐसे वाकयों पर जब आपही छा जाया करते थे। तब आवाज़ किसी और की होगी तब आप याद किए जाएंगे। तब याद किए जाएंगे जब आपकी आवाज़ को कोई और रिप्लेस किया करेगा। फिर कोई कहानी नहीं सुनेगा। क्योंकि उसे कहानी नहीं बल्कि लोगों को क्या सुनाना है इस कला में दक्ष हैं।
फ़र्ज कीजिए आपको अपने होते तरह तरह के व्यंग्य सुनने को मिले और हर वक़्त टांग खींचाई की जाती हो। तो आप खुश भी हो सकते हैं कि कम से कम आपकी चर्चा तो होती है। आप हैं ही ऐसे जिसपर चर्चाएं हुआ करती हैं। चर्चाएं उन्हीं की तो हुआ करती हैं या तो वे अच्छी होती हैं या फिर...।
कुछ है हमारे आप-पास जो कभी नहीं बदला करता। न तो किसी की आदतें अचानक बदल जाती हैं और न किसी की आवज़ इतनी जल्दी बदल जाया करती है। कहते हैं कुछ आवाज़ें बहुत ख़ास हुआ करती हैं। उन आवाज़ को सुन कर ही आपकी पूरी स्मृतियां एक बार चक्कर काट लिया करती हैं। वहीं कौन कहां कैसे बैठा करता है। किस बात पर कैसे रिएक्ट किया करता है। आदि ही आपके जाने के बाद आपका पीछा किया करती हैं।
कोई न तो दफ्तर में ज़िंदगी के दस्तावेज़ लिखा कर आता है। और न सच की जिं़दगी में। यह तो सच ही है कि जो आज ज्वाइन किया है उसे या तो रिटायर होना होगा या फिर एक समय के बाद कुछ इतिहास को कंधे पर लटकाए कहीं और किसी दफ्तर में सेट हो जाना होता है।
वैसे एक बात कहना चाहता हूं। हम जहां भी रहें। जिनके साथ भी रहें। कुछ ऐसी चीजें ज़रूर छोड़ जाएं जिसमें आपकी उपस्थिति मौजूद हो। हालांकि वक़्त हर दर्द और टीस को भर दिया करता है। लेकिन फिर भी कुछ बातें और एहसास ऐसी रह जाती हैं जिन्हें आप कभी पीछे नहीं छोड़ पाते। वह हमेशा आपके साथ रहा करती हैं।

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