Thursday, April 26, 2018

अपने दायरे और सीमा की पहचान



कौशलेंद्र प्रपन्न
हमें हमारे दायरे की पहचान नहीं होती। हमें यह भी नहीं मालूम होता कि हमारी सीमाएं क्या हैं? हमारी क्षमताएं क्या हैं आदि। हम क्या कर सकते हैं और किस हद तक कर सकते हैं इसकी समझ हो तो हमें अपने जीवन में अपने लिए योजना बनाने, सपने देखने में  आसानी होती है। लेकिन अफ्सोसनाक बात यही है कि अधिकांश लोगों का अपनी सीमाओं, क्षमताओं, ताकत एवं दायरे के बारे जानकारी नहीं होती। यह अलग बात है कि क्षमताएं और दायरे बढ़ाई भी जा सकती हैं। लेकिन उसके लिए हमें अतिरिक्त समय, क्षमता, प्रयास और इच्छा शक्ति को बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। अपनी क्षमता, सीमा और दायरे की चौहद्दी को चौड़ी भी की जा सकती है बशर्ते की हम अपनी कार्यशैली और कार्य दक्षता को समय समय पर मांजा करें और सीखने के लिए तैयार रहें।
हमें कई बार जीवन में अपने दायरे से बाहर भी निकलना होता है। बल्कि निकल कर औरों की ज़िंदगी, कार्य, कार्यशैली को देखने, समझने की आवश्यकता पड़ती है। क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं होता। हमें इसी जीवन में इसी समाज में सीखने का अवसर मिला हुआ है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम नई सोच, नए योजनाओं, परिवर्तनों को कितनी उदारता के साथ स्वीकार कर रहे हैं और अपने दायरे से बाहर निकल कर समझने के लिए ख़ुद को तैयार कर रहे हैं।
पिछले दिनों अपने दफ्तर में कार्यरत फाइनांस और एडमिन दे रहे व्यक्ति से बातचीत का मौका मिला। बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो मैंने पहल की कि ज़रा दूसरों के काम को भी समझा जाए। क्योंकि अपने काम के दायरे से बाहर निकल कर दूसरों के कार्य क्षेत्र के बार में अपनी समझ बनाई जाए। वह व्यक्ति भगत हो सकता है, मदन हो सकता है या फिर नाम तो बदलते ही रहेंगे जो चीज नहीं बदलेगी वह है काम और काम की प्रकृति। सो बातचीत में कई सारी बारीकियों सा साबका पड़ा। मालूम चला व्यक्ति बेशक व्यवस्थित तौर पर प्रबंधन का कोर्स न किया हो लेकिन काम करने के दौरान कई सारी दक्षताएं स्वतः ही काम करने की शैली में शुमार हो जाती हैं। जिसे सिद्धांत के तौर पर बाद में पढ़ सकते हैं। हमें में से कई सारे लोग हैं जो निश्चित ही प्रबंधन के कोर्स से नहीं गुजरे होते हैं। लेकिन जिस शिद्दत और दक्षता से काम करते हैं उससे लगता है काश! इनके साथ कुछ देर बैठ कर बात ही कर लें। एक घरेलू महिलाएं व व्यक्ति जिस प्रकार से माह के खर्चों, ख़रीद फरोख़्त आदि की प्लानिंग करता है ताकि ज़रूरत की चीजों भी न घटें और बीच बीच में आने वाली अनप्लान्ड प्रोग्राम भी मैनेज हो जाएं ऐसी प्लानिंग एक एडमिन और फाइनांस के व्यक्ति को करना होता है।
उन्होंने वह शीट भी दिखाई जो वो पूरे साल की बजटीय प्रावधान कर रखा था। साथ ही किस प्रकार से अनप्लान्ड बजट व खर्चे को मैनेज करना है किन मदों में आबंटित करना आदि की प्लानिंग देखकर लगा यह व्यक्ति कितने कामों के बीच रहा करता है लेकिन कभी शिकायत नहीं करता। कभी ऊबा नहीं करता। दरअसल हम अपने काम में तभी उलझे रहते हैं, तभी शिकायत करते हैं जब हम अपने काम को रोज़ाना और हप्ते, माह और साल में समुचित और योजनाबद्ध तरीके से व्यवस्थित नहीं करते। यदि हम अपने काम को सही प्लानिंग करें और बीच बीच में उसका मूल्यांकन भी करते रहें कि कितनी दूरी तय हो गई। कितना और चलना है? बची हुई दूरी को कैसे कम समय में व तय समय सीमा में पूरा करना आदि की पड़ताल करते हुए चलेंगे तो कभी भी काम को बोझ हम पर सवार नहीं हो सकता। दिक्कत यहीं आती है कि जब एक कामगर व छात्र अपने लिए दिन, सप्ताह, माह और साल की योजना बनाता है तब वह रास्ते में आने वाली अड़चनों, रिस्कों का अनुमान नहीं कर पाता। अनुमान कर भी लेता है तो उसके प्रति लापरवाह हो जाता है।
यदि हमें अपनी सीमाओं और दायरे का अनुमान हो और अपनी क्षमताओं का एहसास हो तो हम उसी के अनुसार अपने लिए मिशन और विज़न तय करेंगे। लेकिन हम अपने आप में इतने स्पष्ट नहीं होते कि अपनी क्षमताओं और दायरे की पहचान में समय लगाएं। बस दूसरे क्या कह रहे हैं? उनके सपने व दायरे क्या हैं? आदि को जानने और आलोचना करने में वक़्त ज़ाया किया करते हैं। कितना बेहतर हो कि हमें हमारे दायरे और सीमाओं का एहसास हो और उसके अनुसार हम अपने और कंपनी के लिए कार्ययेजना बनाएं तो कभी भी जीवन और कार्य में विफल नहीं हो सकते।


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