Thursday, December 7, 2017

इतिहास की किताब और हमारी नज़र



कौशलेंद्र प्रपन्न
हाल ही में यूनेस्को की ओर से हर साल जारी होने वाली रिपोर्ट 2017-18 ग्लोबल एजूकेशन मोनिंटरिंग रिपोर्ट जीइएमआर 2017-18 जारी की गई। इस रिपोर्ट में ख़ासकर भारत और पाकिस्तान में स्कूली पाठ्यपुस्तकों की राजनीति की ओर चिंता जारी रेखांकित की गई है।इस रिपोर्ट में बताया गया हैकि पाकिस्तान में इतिहास की किताबों में आतंकवाद, विभाजन और भारत के प्रति ख़ास दृष्टिकोण को तवज्जो दी गई है।बताया गया हैकि भारत में गोधरा कांड की प्रस्तुति और अयोध्या विवाद को रोमांचक तरीके से पेश करने की कोशिश की गई है।भारत औ पाकिस्तान में 1947 के बाद तारीखें बेशक बदलीं हैंलेकिन दोनों ही देशों में इतिहास को पढ़ने पढ़ाने की नज़र स्पष्ट नहीं है।गौरतलब हैकि प्रो. कृष्ण कुमार ने इसी मसले को प्रिजुडिश ए।प्राइड पुस्तक में बडी ही शिद्दत से पाठ्यपुस्तकों का विश्लेषण किया है।
शिक्षा में पाठ्यपुस्तकों को एक ऐसे औजार के तौर पर प्रयोग करने का चलन है जहां शिक्षकीय सत्ता को कमतर किया जाता है। शिक्षक चाह कर भी पाठ्यपुस्तकों को पढ़ाने के दौरान अपनी दक्षता का इस्तमाल नहीं कर पाता। शिक्षकों के सामने एक सवाल यह खडा होता है कि समय सीमा में पाठ्यपुस्तकों को पूरा कराए। और आज शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सा बना चुका परीक्षा में अच्छे अंक हासिल कर सके। स्पष्टतः शिक्षक महज पाठ्यपुस्तकों को हस्तांतरित करने वाला मशीन नहीं है बल्कि वह बच्चों में अपने परिवेश को समझने में सक्षम हो सके, इस प्रक्रिया में मददगार साबित होना है।

1 comment:

Unknown said...

सही कहा आपने

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

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