Thursday, December 14, 2017

पढाना चाहें, पर वक्त नहीं


कौशलेंद्र प्रपन्न
पिछले दिनों तकरीबन बीस शिक्षकों के साथ उनकी कक्षा में बातचीत और मुलाकात का अवसर मिला। इस मुलाकात में कई सारी बातें, शिक्षण समस्याएं और चुनौतियों से रू ब रू होने का मौका मिला।
बच्चों को किस प्रकार हिन्दी पढ़ने में दिक्कतें आती हैं। शिक्षक किस प्रकार उन्हें पढ़ने के प्रति प्रेरित किया जाए आदि पर विस्तार बातचीत हुई।
अधिकांश शिक्षकों से जो बात सुनने को मिली उसका लब्बोलुआब यही था कि उन्हें पढ़ाने का मौका बहुत कम मिलता है।
डाइस की रिपोर्ट, बैंक के साथ बच्चों के आधार कार्ड जोड़ना, वर्दी के पैसे बांटना,आदि कामों में ऐसे उलझे होते हैं कि पढ़ाना पीछे छूट जाता है।
बच्चों को पढ़ाने के लिए बेचैन शिक्षक अंत में भारी मन से अपने घर जाते हैं। कहते हैं सर हमें कई बार बहुत खराब लगता है जिस दिन हम बच्चों को नहीं पढ़ाते।
यह दर्द यह एहसास न जानें कितनों को होता होगा मालूम नहीं लेकिन जितने भी ऐसे शिक्षक हैं उन्हीं की वजह से शिक्षा में जो भी गुणवत्ता बची है उन्हें इसका श्रेय जाता है।

1 comment:

Pallavi Sharma said...

Ji sir ..yeh vyatha adhyapak ko mansik roop se prabhavit kar use asantushti ke rasatal tak pahuncha rahi ha

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