Friday, December 1, 2017

कुत्ते का खर खर




कौशलेंद्र प्रपन्न
सुबह एक दरवाजे के बाहर कुत्ते को देखा। वो कॉल बेल नहीं बजा सकता था। उसकी पहुंच में डोर बेल नहीं था। सो बेचारा क्या करता।
संभव है रोज उसे उस दरवाजे पर खाने और पीने को दूध मिला करता होगा। सो आज सुबह के नौ बज रहे होंगे। शायद दरवाजा न खुला हो। उसे भूख लगी हो। कुत्ता लगातार दरवाजे पर खर खर कर रहा था। इंसान और जानवर में बहुत ज्यादा अंतर दिखाई नहीं देता। यदि कोई अंतर हो सकता है कि तो वह भूख में चिल्लाने, लड़ने झगड़ने और मूक निवेदन करना है।
हमारे आस-पास कई जानवर ऐसे हैं जो बिन कुछ बोले अपने मन की बात और दिल की धड़कने साझा किया करते हैं। हम में से कई ऐसे हांगे जिनके लिए वह कुत्ता भर नहीं होता। वह एक जीता जागता इंसान हुआ करता है।
हमारे आस-पास कई ऐसे जानवर हैं जो एकदम से गायब होते जा रहे हैं। वह चाहे प़क्षी हो, जानवर हो, गोर-डंगर हों लेकिन उसकी चिंता हमें नहीं सताती। हमें सताती है पद्मावती क्यों रूक रही है या क्यों दर्शकों तक आ रही है। हमें चिंता इस बात की होती है कि हमारी एसी क्यों काम नहीं कर रहा। हमें चिंता नहीं सताती कि पास में गरवैया हुआ करती थी वो अब नहीं बैठा करती। कौए बहुत तेजी से हमारे बीच नदारतहो रहे हैं। वो कहां चले गए। अब हमारे पुरखों के पिंड कौन खाएगा।
कहते हैं जानवर हमारी संवेदना को समझते हैं और हमारे करीब ही रहने की कोशिश करते हैं। धीरे धरे वे हमारे परिवार के सदस्य हो जाते हैं। महादेवी वर्मा, जानकी बल्लभ शास्त्री आदि के घर में जानवरों को परिवार का अंग माना जाता था। वह साहित्यिक यात्रा में सहयात्री भर नहीं थे बल्कि उनके जीवन का भी हिस्सा हो चुके थे।

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