Tuesday, December 12, 2017

मास्टर जी की आदतें



कौशलेंद्र प्रपन्न
बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ा करता था। शायद क्लास छठी या सातवीं या फिर आठवीं में। मुझे लिखना बिल्कुल पसंद नहीं था। मास्टर नगीना बाबू जो कुछ भी लिखा करते। मैं उसे अपनी कापी में नहीं लिखा करता। एक बार चक्कर काटते हुए मेरी कॉपी पर नजर गई।
‘‘पंडित!!! तुम्हारी कॉपी ख़ाली क्यों है? तुम लिख नहीं रहे हो।’’
‘‘मैंने कहा, मिट जा रहा है।’’
उन्होंने पूरी क्लास के सामने दुबारा ब्लैक बोर्ड पर लिखा लेकिन मिटा नहीं। तब वापस आए। और पूछा पंडित कहां मिटा। और कॉपी उठाई। कहा, ‘‘अपनी पिताजी का नाक कटवाओगे?’’
‘‘शाम में पिताजी मिलेंगे। समझे।’’
दूसरा वाकया गोरख बाबू के साथ का रहा। वो मुझे नौवीं कक्षा में हिन्दी में मिले। उनकी लेखनी और लिखने की शैली लाजवाब थी। वो जो भी लिखा करते सिरोरेखा नहीं डालते थे। गोरख बाबू का प्रभाव यूं चढ़ा कि आज तलक मैंने हिन्दी लिखते वक्त सिरोरेखा नहीं डाला। कई बार लोगों ने टोका। पिताजी ने टोका डांटा आदि। लेकिन आदत जो पड़ चुकी थी।
हिन्दी लिखने की शैली और तौर तरीका पर गोरख बाबू का असर रहा। उनसे पूछा कि वो क्यों ऐसे लिखते हैं?
तब उन्होंने कहा, ऐसे जल्दी जल्दी लिख लेता हूं। रफ्तार में लिख पाता हूं। पता नहीं कब हमारे बच्चे अपने शिक्षकों के हर चीज को करीब से नकल करते हैं। कब मास्टर जी की आदतें हमारी हो जाती हैं। इसका पता ही नहीं चलता।

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