Monday, December 18, 2017

800 से ज्यादा बंद कर दिए गए सरकारी स्कूल



कौशलेंद्र प्रपन्न
राज्य उड़िया। गांव,जिला मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी का चुनावी क्षेत्र। गांव भी आदिवासियों का। उसमें भी सरकारी स्कूल। कौन आवाज उठाए। बच्चे किसके आदिवासियों के। उन्हें पढ़ने-लिखने से क्या हासिल होगा। क्या वे पढ़-लिखकर कलक्टर बनेंगे?क्या वे राजनेता बनेंगे? मालूम नहीं। लेकिन उनके चुनानी क्षेत्र में पिछले शुक्रवार की ख़बर के अनुसार 800 से ज्यादा सरकारी स्कूलों में ताला लगा दिया गया।
सरकारी स्कूलों में ताला लगने की यह कोई नहीं ख़बर नहीं है। वैसे में जब एक प्रचारमंत्री वोट डाल कर रोड शो करते हों। ऐसे में जहां आम लोगों से उनकी सरकारी शिक्षा के रास्ते बंद किए जाते हों। क्या फर्क पड़ता है? किसे फर्क पड़ेगा?
सरकारी आती जाती हैं। लेकिन शिक्षा, बच्चे, समाज वहीं का वहीं रह जाता है। उसपर आदिवासी समाज से हमने वन संपदा तो हसोत ही ली। उनसे शिक्षा के अधिकार को भी अपने कब्जे में कर रहे हैं। कौन उठाएगा उनकी आवाज़।
आरटीई फोरम देश भर में शिक्षा के अधिकार आधिनियम की रक्षा और सरकारी स्कूलों को बचाने की वकालत करता है। हाल ही में दिल्ली में नेशनल सम्मेलन भी हुआ। उसमें देश भर से शिक्षाकर्मी, नीति निर्माता और शिक्षा-अधिकार की आवाज को बलंद करने वाले जुटे। यह संस्था राजस्थान, म.प्र, यूके आदि राज्यों में सरकारी स्कूलों के बंद होने पर पूरजोर आवाज उठाई थी।
एक ओर सस्टनेबल डेवलप्मेंट यानी सतत् विकास लक्ष्य को पाने के लिए 2030 तक की रणनीति बनाने में देश लगा है वहीं दूसरी ओर हमारे बच्चों से सरकारी स्कूल भी दूर किए जा रहे हैं।
मलूम चला कि जिन स्कूलों को बंद किया गया। उनमें पढ़ने वाले बच्चों को विकल्प के तौर पर दूसरे स्कूलां में दाखिला दे दिया जाएगा।
यही तर्क दूसरे राज्यों में भी सरकार की ओर से दिए गए थे। लेकिन वहां कोई पूछने वाला नहीं कि जिन बच्चां के स्कूल बंद हुए क्या वे बच्चे दूसरे स्कूलों में जा रहे हैं।
स्रकारी स्कूलांं को बंद होने हमें बचाने की आवश्यकता है।

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