Tuesday, December 5, 2017

कहानी पढ़ते-पढ़ाते..



कौशलेंद्र प्रपन्न
कहानियां हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हुआ करती हैं। कहानी सुनते,सुनाते, पढ़ते-पढ़ाते लंबा अर्सा हुआ। फिर भी कहानी कैसे पढ़ाएं जैसे सवाल बार बार सामने खडे होते हैं।कहानियों को पढ़ाने के तौर तरीकों और विधियों को लेकर कई सारे लेख, सामग्री बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन इन सब के बावजूद कहानियां कैसे पढ़ाई जाएं एक मसला आज भी है।कहानियों को पढ़ते-पढ़ाते वक्त किस प्रकार की सावधानियां रखी जाएं इसको लेकर किताबें भी हमारी मदद करती हैं।
श्री पंकज चतुर्वेदी के संपादन में नेशनल बुक ट्रस्ट से एक किताब छपी हैकहानी कहने की कला। इस किताब में प्रो. कृष्ण कुमार, पंकज चतुर्वेदी, बालकृष्ण देवसरे आदि के लेख पठनीय हैं। इस किताब में बडी शिद्दत से कहानी के विभिन्न तत्वों और पहलुओं पर चर्चा की गई है।लेकिन फिर क्या वजह हैकि कहानियां क्यों लचर तरीके से पढ़ी पढ़ाई जाती हैं।
मैंने कुछ प्रयोग स्कूली शिक्षकों के साथ किए। वे कैसे कहानी को पढ़ें, कैसे कहानी का पाठ करें और अंत में कहानी नाट्यरूपांतरण कैसे हो।
पहले तो कहानी कैसे बनती है। कहानी किन किन चीजों से मिलकर आकार लेती है। इस पर विस्तार चर्चा की। चर्चा के दौरान वे तमाम तत्व निकल कर आए जिन्हें चाहता तो सीधे सीधे लिख देता और वे अपनी कॉपी में उतार लेते। किन्तु ऐसा नहीं किया। जो तत्व उन्हें याद आते गए उन्हें हमने लिख दिया। जिसमें कथानक, जिज्ञासा, घटना, परिवेश, बाल सुलभ चंचलता, बच्चे की दुनिया, भाषा आदि। हमने इन तत्वों के गांठ को खोलने शुरू किए। कि यही वो तत्वों क्यों आपको याद आए।
अब बारी थी कहानी क्यों जरूरी है? कहानियों से क्या होता है? बच्चे या बड़ों के लिए कहानियों का क्या मायने है आदि।
कहानियां मनोरंजन के लिए, उत्सुकता के लिए, भाषा क संस्कार सीखने के लिए, कुछ भी सीखने के लिए, शिक्षा, सीख, मूल्य, नैतिकता आदि से परिचय कराने के लिए कहानियां पढ़ी और पढ़ाई जानी चाहिए।
अब हमने पाठ्यपुस्तक की कहानियों के चुनाव करने के लिए कहा। सभी ने एक एक कहानियां चुन लीं। काम यह था कि उस चुनी हुई कहानी में उक्त कौन कौन से तत्व आपको दिखाई देते हैं। क्या आप उस कहानी में कुछ भी किसी भी स्तर पर कोई फेर बदल करना चाहेंगे।
दूसरा खंड़ दिलचस्प था। बड़ी ही शिद्दत से शिक्षकों ने इस काम को अंजाम दिया। सब ने कहानी के तत्वों की पहचान अब सैद्धांतिक स्तर से नीचे उतर कर जमीनी हकीकत को जी रहे थे। इस गतिविधि का एक और स्तर था कहानी का पाठ। कहानी को कैसे पढ़ें। कहानी पाठ के अभ्यास के दौरान पाया कि कई शिक्षकों की भाषा और उच्चारण में काफी भिन्नताएं थीं। उस भिन्नता को प्रयोग हमने कहानी के पात्रों के संवादों में इस्तमाल किया। कि माना आपका पात्र फलां परिवेश से आता है तो उसकी भाषा-बोली ऐसी ही होगी।
कुल मिला कर कहानी पढ़ने-पढ़ाने के साथ यह अभ्यास और स्वयं के साथ प्रयोग आनंदपूर्ण रहा।
आप कैसे सुनते हैं कहानी? 

2 comments:

Unknown said...

यदि शिक्षक लंबी से लंबी कहानी रोचकता, भावुकता, और विद्यार्थियों के सहयोग के साथ पढ़ायें तो कहानी और भी श्रवणीय बन सकती है

BOLO TO SAHI... said...

शुक्रिया मेघा जी सही कहा आपने

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