Thursday, September 28, 2017

शिक्षा की चिंता में घुलती घुरनी


कौशलेंद्र प्रपन्न
पूर्वी दिल्ली नगर निगम की शिक्षा समिति की अध्यक्ष सुश्री हिमांशी पांडे ने वाजिब सवाल उठाया है कि सरकार शिक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है फिर क्या वजह है कि बच्चों को पढ़ना भी नहीं आ रहा है। इन्होंने तमाम अधिकारियों की बैठक में यह चिंता साझा की। वहीं विश्व बैंक ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की  है। इसमें रिपोर्ट की मानें तो हमारा भारत उन बारह देशों में दूसरे स्थान पर है जहां बच्चे सामान्य वाक्य नहीं पढ़ पाते। सामान्य से जोड़ घटाव नहीं कर पाते।
विश्व बैंक की िंचंता भी गंभीर है कि करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद क्या कारण है कि बच्चों को शिक्षा की बुनियादी समझ और कौशल नहीं मिल पा रहे हैं।
यह चिंता आज की नहीं हैं बल्कि समय समय पर विभिन्न रिपोर्ट में भी दिखाई देती हैं। लेकिन एक हम हैं कि हमारी नींद नहीं खुलती। घुरनी तो इस बात को लेकर चिंतित है कि आने वाली पीढ़ी कैसी शिक्षा लेकर जीवन के मैदान में उतरने वाली है।
विश्व बैंक ने कहा है कि जहां दूसरी कक्षा के छात्र छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते। यह एक रेखीए व्याख्या है। क्योंकि घुरनी का तजर्बा कहता है कि बच्चे स्कूलां में न केवल वाक्य पढ़ पाते हैं बल्कि उसके अर्थ तक की यात्रा करते हैं। घुरनी का अनुभव तो यह भी है कि बच्चों को शिद्दत से पढ़ाया जाए तो कोई वजह नहीं है कि वे पढ़ न पाएं।
विश्व बैंक ने कहा है कि बिना ज्ञान के शिक्षा देना ना केवल विकास के अवसर को बर्बाद करना है बल्कि दुनिया भर में बच्चों और युवा लोगों के साथ बड़ा अन्याय भी है। रिपोर्ट इस ओर भी हमारा ध्यान दिलाती है कि इन देशों में लाखों युवा छात्र बाद के जीवन में कम अवसर और कम वेतन की आशंका का सामना करते हैं। क्यांकि स्कूल उन्हें ज्ञानपरक शिक्षा देने में विफल है।

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