Tuesday, October 3, 2017

पढ़ने का कैंपेन



कौशलेंद्र प्रपन्न
किताबें किस के लिए होती हैं? प्रकाशक के लिए? लेखक के लिए? पाठक के लिए? किस के लिए लेखक लिखता है। यह तय होना जरूर है। निश्चित ही किताबें पाठकों के लिए ही होती हैं। लेकिन किताबों से मुहब्बत पैदा करना भी लेखक का ही का ही काम होता है। यह काम लेखक का कंटेंट कराता है। देवकी नंदन खत्री ने चंद्रकांता लिख कर पाठकों को हिन्दी सीखने पर विवश किया। यह एक लेखक का जादू था। जो अपनी लेखनी के बल पर पाठकों को जन्म दिया।
आज हजारों लाखों किताबें हर साल लिखी और छप रही हैं। लेकिन पाठक कुछ ख़ास किताबों तक ही पहुंच पाते हैं। बाकी किताबें प्रकाशकों की जानकारी में कहीं सांस ले रही होती हैं। लेकिन वे पाठकां से दूर होती हैं।
पिछले दिनो बेस्ट सेलर किताबों और लेखकों की सूची जारी हुई। उसमें कई लोगों को एतराज़ हुआ कि यह कैसे तैयार किया गया। इनमें किन लोगों को शामिल किया गया आदि। इस पर आरोप तो यह भी लगा कि यह सूची बाजार आधारित और बाजार द्वारा तैयार की गई है।
जो हो लेकिन किताबें तो हर साल लिखी और छप रही हैं। लेकिन पाठकों के पसंद की किताबें उनकी पहुंच से काफी दूर हैं। कभी गांधी जी ने कहा था कि हर हाथ को काम हर हाथ को शिक्षा। वैसे ही क्यों न हर हाथ को किताब का कैंपेन चलाया जा सकता है। कम से कम जो किताबें अब आपके काम की नहीं रहीं वो किसी और के हाथ सौंप दी जाए।

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