Friday, September 1, 2017

शिक्षक दिवस पर विमर्श




कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षक दिवस का हप्ता आ चुका है। सोचता हूं कि इस पूरे हप्ते शिक्षक के विभिन्न आयामों को लेकर बातचीत हो। इसी संदर्भ में आज प्रस्तुत है-
कक्षा में शिक्षक के तेवर बरताव
जब एक शिक्षक कक्षा में होते हैं तब उन पर कई तरह के दबाव और असर काम करते हैं। इन्हीं दबावों के मार्फत शिक्षक का व्यवहार निर्धारित होता है। यूं ही कोई शिक्षक गुस्सा नहीं करता। न ही तमाचे जड़ना चाहता है। कोई तो वजह रही होगी और हाथ उठ गए होंगे।
एक सैनिक पर दबाव बढ़ता है तब वह या तो आत्महत्या करता है या फिर अपने ऑफिसर को गोली मारता है। लेकिन शिक्षक के कंधे पर नैतिकता और मूल्य संवाहक की भार इतना ज्यादा होता है कि वह न तो गोली मार सकता है और न आत्महत्या।
एक शिक्षक को जब लगातार चार पांच माह बिना सैलरी काम करना पड़ता है तो उनकी मनोदशा को समझने की आवश्यकता है। यह समझने की बात है कि उसे किस प्रकार कक्षा में पढ़ाना है। सवाल का जवाब हमें ही देना होगा कि एक शिक्षक को जब बैंक, आधार, सर्वे आदि के काम के साथ पढ़ने की ललक को कैसे बचा कर रखा जाए।
देश के जिस भी राज्य पर हाथ रखें हम पाएंगे कि वहां हजारों शिक्षकों के पद वर्षों से खाली हैं। कॉटेक्ट पर काम कर रहे शिक्षक हर दिन अनिश्चितता में काम करते हैं।
एक शिक्षक को कक्षा में बाल मनोविज्ञान, समाज विज्ञान, खुद की मनोदशा, आर्थिकी दबाव आदि को सहना पड़ता है। जो भी कक्षा में आता है वह शिक्षक को नसीहतें ही दे कर जाता है। तमाम शैक्षिक खामियों का कसूरवार गोया शिक्षक नामक प्राणि ही है। हमें तोहमत मढ़ने से पहले शिक्षक के कार्य स्थल और कार्य की पेचिंदगियों को भी समझना होगा

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