Wednesday, September 13, 2017

7 पूंछ वाला चूहा



कौशलेंद्र प्रपन्न
कहानी है। कहानी है तो पात्र भी होंगे। पात्र हांगे तो संवाद भी होगा। संवाद हैं तो कहानी आगे भी बढ़ेगी। कहानी कुछ यूं है कि एक चूहा था। उसके 7 पूंछ थे। वह परेशान था कि उसे सभी चिढ़ाते कि सात पूंछ का चूहा 7 पूंछ का चूहा। इससे वह बेहद दुखी भी रहने लगा।
सोचा क्यों न इस फसाद की जड़ को ही खत्म कर दिया जाए। और पहुंच गया नाई के पास। बोला, ‘‘ नाई नाई मेरी एक पूंछ काट दो।’’
और नाई ने एक पूंछ काट दी।
अब चूहा तो सोच रहा था जिंदगी आसान हो गई। लेकिन उसकी परेशानी बनी रही। लोगों ने पूछना और बोलना नहीं छोड़ा। अब कहने लगे छह पूंछ का चूहा छह पूंछ का चूहा। फिर परेशान चूहा नाई के पास गया और अपनी एक और पूंछ कटा ली।
यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक कि उसने अपनी सारी पूंछें न कटा लीं। जब बिना पूंछ के चूहे को लोगों ने देखा फिर शुरू हो गए ‘‘ बिन पूंछ का चूहा’’
उस चूहे की सोचिए क्या स्थिति हुई होगी। जब सात पूंछें थीं तब भी लोगों ने उसे जीने नहीं दिया। और जब बिन पूंछ का होगा तब भी उसका जीना दुभर हो गया।
शायद हमारी भी स्थिति इससे ज्यादा बेहतर नहीं दिखाई देती। जब आप कुछ करते हैं तब सुनने को मिलता है कुछ नहीं करता। जब करते हैं तब सुनते हैं ऐसे करते हैं? करना भी नहीं आता। आदि।

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