Tuesday, September 12, 2017

याद न हो कोई कविता तो...



कौशलेंद्र प्रपन्न
पिछले दिनों कुछ यही कोई बीस प्राथमिक शिक्षकों से बातचीत करने का अवसर मिला। अवसर था हिन्दी शिक्षण की कार्यशाला। इसमें बीस में से तकरीबन सतरह शिक्षक ऐसे थे जिन्हें कोई भी कविता याद नहीं थी।
सवाल था क्या आपको कोई कविता याद है? जो पाठ्यपुस्तक में हो या बाहर की कोई कविता याद हो तो सुनाएं। इस सवाल पर पहले तो वे भड़क गए। हमें कविता क्यां याद हों? किताब में तो है ही। हम किताब से देख कर कविता पढ़ाते हैं।
तज्जुब तो तब हुआ जब पाठ को पढ़ने के लिए दिया गया। उनके पठन को देखकर निराशा हुई। उन्हें ठीक से पढ़ना भी नहीं आ रहा था। ऐसे अटक अटक कर पढ़ रहे थे गोया वे चौथी व तीसरी के बच्चे हों। अनुमान लगा रहा था कि ये अपनी कक्षाओं में कैसे पढ़ाते होंगे। मगर आगे तो बात करनी थी।
पहले स्वयं कविता का वाचन और पठन कर के उन्हें सुनाया। सुन तो बड़े ही गौर से रहे थे। उनकी प्रतिक्रिया सुन कर अफ्सोस हुआ जब उन्होंने कहा ‘‘ समा बांध दी आपने।’
गोया कोई कवि सम्मेलन हो रहा हो। उन्हें क्यों पढ़ना चाहिए इस पर बातचीत अंतिम पखवाड़े में किया। यदि आप पेशे से शिक्षक हैं तो आपको कविता गाने, पढ़ने और वाचन करने की कला तो आनी ही चाहिए। क्योंकि पेशेगत पहचान की मांग है कि आपको कविताएं, कहानियां आती हों। अब उनमें इसकी टीस जगी। फिर उन्होंने स्वीकार किया हां हम लोग ऐसे नहीं पढ़ाते थे। पढ़ते तो थे लेकिन यहां जैसे बताया गया वैसे नहीं पढ़ाते थे।
यह एहसास होना ही काफी नहीं था। उनसे कबूल कराया कि अब जब वे कक्षा में वापस पढ़ाने लौटें तो कोशिश करें कुछ कविताएं पढ़कर जाएं। कहानी सुनाने से पहले उसकी तैयार कर के स्कूल में जाएं।

1 comment:

Pallavi Sharma said...

True sir ..teachers should know how to recite a poem only then they can introduce it to students and can feel it themselves

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