Monday, September 11, 2017

शिक्षा मित्र और सरकारी नीति




कौशलेंद्र प्रपन्न
सन् 1989 के आस पास शिक्षा मित्र, पैरा टीचर शिक्षा सहायक आदि नामों से परिचित यह समुदाय बहुत तेजी से सरकार की आंखों में भा गए। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में तब इन्हीं के कंधों पर प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारी डाल दी गई। सरकार लंबी नींद में चली गई। सस्ते और टिकाउ कर्मचारी किसको नहीं पसंद है। सरकार के लिए शिक्षा मित्र तीन हजार से लेकर पांच दस हजार में उपलब्ध होने लगे। सरकार की नियति बदल गई। इन्हीं के मार्फत प्राथमिक शिक्षा की गाड़ी हांक दी गई। स्थाई शिक्षक एक एक रिटायर होते गए और शिक्षा मित्र धीरे धीरे मुख्य भूमिका में आते चले गए। लेकिन खुश होने वाली बात नहीं क्योंकि इन्हें वेतन के नाम पर कोई ख़ास अंतर नहीं आया।
शिक्षा मित्र जनसुलभ श्रमकर्मी मिल जाते हैं। सरकार ऐसे श्रमजीवी को स्कूलों में झोंक देती है। कम लागत में उपलब्ध श्रमजीवी को प्रशिक्षित करने के लिए सरकार समय समय पर निर्णय देती रही है। आरटीई के अनुसार पैरा टीचर को दो साल के भीतर प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है।
सरकार शिक्षा मित्र के आत्मबल को बनाए रखने के लिए समय समय पर उन्हें स्थाई करने की घोषणा की जाती रही हैं। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। लाखों शिक्षा मित्र अभी भी सड़कों पर हैं। हजारों ऐसे शिक्षक हैं जिनकी उम्र अब सरकारी नौकरी के नियमानुसार खत्म हो चुकी है। अब उनके सामने रोजगार बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन शिक्षा मित्रों में से काफी ऐसे हैं जिन्होंने सीसैट, राज्य परीक्षा, नेट आदि पास हैं। अफ्सोस कि वे अभी भी अस्थाई शिक्षा मित्र के तौर पर खट रहे हैं। हमें ऐसी प्रतिभाओं का सही और सकारात्मक इस्तमाल करने की मुकम्मल योजना बनानी चाहिए।

1 comment:

Neha Goswami said...

शिक्षा मित्रों की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है।

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