Saturday, September 9, 2017


घुरनी!!! जीवन सस्ती, शिक्षा महंगी
कौशलेंद्र प्रपन्न
घुरनी अच्छा ही हुआ तुम किसी स्कूल में नहीं गई। स्कूल जाती तो मालूम नहीं जिंदा बचती या नहीं। कम से कम स्कूल नहीं गई तो जिंदा तो हो। वैसे क्या स्कूल और क्या घर? कहीं भी तो तुम सुरक्षित नहीं रही।
हमने तो सोचा था कि स्कूल में तुम महफूज होगी। वहां तुम्हें जिंदगी से रू ब रू कराया जाएगा। जीवन में आने वाली परेशानियों और चुनौतियों से लड़ने की ताकत दी जाएगी। लेकिन ग़लत था शायद। क्योंकि वह जगह भी विश्वास के घेरे से बाहर हो चुकी है।
जब स्कूल के कर्मचारी, शिक्षक आदि स्टॉफ के भरोसे हमारे बच्चों की जिंदगी सुरक्षित नहीं तो इससे अच्छी बात है हमारे बच्चे स्कूल न जाएं। क्या शिक्षा जीवन से बड़ी होती है? और अगर शिक्षा से जीवन से बड़ी है और महंगी भी तो बेहतर है जीवन बचाया जाए।
घुरनी तुम जिस दौर में जी रही हो वह समय कुछ ज्यादा ही क्रूर हो चुका है। तुम्हारी बहनें और भाई अस्पताल में ही दम तोड़ गए। उस पर तुर्रा यह है कि अगस्त में ऐसा होता है। जब हमारी शिक्षा और नागर समाज तुम्हारी रखवाली ही नहीं कर सकती तो ऐसे में क्या स्कूल और क्या शिक्षा।
ल्ेकिन घुरनी चिंता तो तब होती है जब किसी दिन तुम कहती हो कि स्कूल जाने का मन नहीं है। नहीं जाना स्कूल। तब मन धकधक करने लगता है। घुरनी जब भी तुम्हें स्कूल से डर लगे। कुछ महसूस हो तो बेफ्रिक हो बताना।

 

2 comments:

hindiCBSE.com said...

दोष हमारे समाज का है। क्यों उम्मीद करता है कि जो कुछ करना होगा वह सरकार करेगी? एक चिंगारी की आवश्यकता है। क्यों न वह चिंगारी बनें जिससे समाज को रास्ता दिखे और वह आगे बढ़े।

Neha Goswami said...

बहुत ही चिंताजनक बात है कि हमारे बच्चे विद्यालयों में भी सुरक्षित नहीं है। वर्तमान में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है।

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