Saturday, March 31, 2018

मार्च में शिक्षा...


कौशलेंद्र प्रपन्न
मार्च पहले बजट के नाम से बदनाम था बेचारा। हर कोई मार्च से डरा करते थे। दूसरा डर बच्चों में नींद उड़ाने के लिए काफी होता था। यही वह माह है जिसमें बच्चे पूरे साल की मेहनत परीक्षा के मत्थे चढ़ा दिया करते हैं। मार्च ही है जो पूरी ज़िंदगी पर भारी पड़ा करता है। बच्चे और बच्चांे के साथ ही अभिभावकों के लिए भी तनाव भरा हुआ करता है।
इस बार का मार्च कुछ ज़्यादा ही उथल पुथल भरा रहा। दसवीं और बारहवीं के पेपर लीक हुए। बच्चे निराश और तनाव सह रहे हैं। अभिभावकों को अपनी नौकरी और यात्रा के बीच ज़द्दो जहत करनी पड़ रही है। यह पहली दफ़ा नहीं है जब परीक्षा के पेपर लीक हुए हों। लेकिन आख़िर भी नहीं है। जब जब परीक्षा के पेपर लीक होते हैं तब एक परीक्षा तंत्र शक के घेरे में नहीं आते बल्कि पूरी शिक्षा और परीक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं।
परीक्षा शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए है या परीक्षा बच्चों की जिं़दगी में तनाव घोलने के लिए? क्या परीक्षा सचमुच बच्चों की प्रतिभा और दक्षता को मापने मंे सक्षम है? सवाल कई हैं जिनके उत्तर दिए जाने चाहिए। परीक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाले तंत्र को प्रबंधित करना होगा। वरना इसकी तरह की लापरवाही व चूक होती रहेंगी।
परीक्षा शिक्षा की मुंहबोली बहन सी है। कभी कभी इतनी रूखी हो जाती है कि पहली वाली को दुखी कर जाती है। जबकि परीक्षा को शिक्षा के साथ सहयोग का रिश्ता रखना चाहिए। वास्तव में परीक्षा के रूपरूप समय समय पर सत्ता के अनुसार बदलते रहे हैं। जब भी सत्ता ने शिक्षा को औजार के रूप में प्रयोग किया है तब तब शिक्षा और परीक्षा की मूल प्रवृत्ति से छेड़छाड़ किया ही गया है।
सरकार और सत्ता शिक्षा को हमेशा ही इस्तमाल करती रही है। जब भी पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रमों में बदलाव किए गए हैं तब तब शिक्षा की चिंता कम अपनी नीति और दिशा को मजबूत करने का प्रयास किया गया है।

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