Monday, March 5, 2018

परीक्षा के डर पर चर्चा ए आम


कौशलेंद्र प्रपन्न
शायद पहली बार हुआ है कि जब प्रधानमंत्री, प्रेसिडेंट ने बच्चों को परीक्षा से पूर्व संवाद किया। संवाद करने के तरीके बेशक अलग थे। किन्तु संवाद तो स्थापित किया। इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने बच्चों की परीक्षा को शायद इस गंभीरता से नहीं लिया। यदि लिया होता तो बच्चों से संवाद भी करता। जो भी हो इस बार प्रेसिडेंट साहब ने भी परीक्षा से पूर्व बच्चों को बधाईयां एवं शुभकामनाएं दीं।
प्रधानमंत्री ने तो बाजाप्ता बच्चों से कांफ्रेंसिंग कॉल के ज़रिए संवाद स्थापित किया। इसमें केंद्रीय विदयालय और कॉलेज के छात्र भी शामिल थे। क्या उत्तर भारत, दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर राज्य बल्कि जम्मू कश्मीर से लेकर लेह लद्दाख तक के बच्चों से जुड़कर परीक्षा बिना भय के संदेश संप्रेषित किया।
प्रो. यशपाल ताउम्र बच्चों को शिक्षा और परीक्षा बिना बोझ के लिए काम करते रहे। लेकिन आज तक तो बच्चे परीक्षा के भय से बाहर निकल सके। बल्कि प्रो. यशपाल जी ने तो नीतियों और समितियों के माध्यम से भी शिक्षा और परीक्षा को भय से मुक्ति दिलाने का प्रयास करते रहे।
आज तकनीक बदली है। संदेश प्रेषित करने के माध्यम बदले हैं। वैसे ही संदेश भेजने वाले का चेहरा भी बदला है। वह वह चेहरा है जो बच्चों में प्रिय बनने के लिए लालायित है। इतना ही नहीं विभिन्न राज्यों में शिक्षा के मार्फत घर घर बस्मे में पहुंच बनाना चाहता है।
साहब ने परीक्षा से पूर्व बच्चों से कहा कि परीक्षा में मुसकुराते हुए रहना। चिंता मत करना। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? क्या बच्चे मुस्कुराते हुए परीक्षा भवन से बाहर आएंगे। अगर आ भी गए तो मई के अंतिम पखवाड़े में उनकी मुस्कुराहट खत्म हो जाएगी। उम्मीद तो की ही जा सकती है कि प्रधानमंत्री जी तब भी मन की बात करेंगे और कहेंगे चिंता मत करना। अगर फेल भी हो गए तो क्या अगला साल फिर बैठ जाना। अगर पास हो गए तो और भी अच्छा।
कितना अच्छा होता कि संदेश की बजाए ऐसी नीतियां बनतीं और उन नीतियों को अमल में भी लाया जाता जिनसे वास्तव में बच्चे चिंता और भय मुक्त हो परीक्षा दे पाते।

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