Tuesday, March 27, 2018

शिक्षा में हिचकी यानी हाशिए से मुख्यधारा का सफ़र


कौशलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा की कई सारी कहानियां हैं। इनमें से कुछ कहानियां समय समय पर फिल्मों में देखने को मिलती रही हैं। हिचकी हमारी शैक्षिक कहानियों में से एक है। यह फिल्म दरअसल हमारी शिक्षा में समावेशीकरण और बहिष्करण के विभिन्न पहलुओं को विमर्श पटल पर गहरे उभारती है। बात सिर्फ फिल्म की ही नहीं है बल्कि हमारी शिक्षा ऐसे दिव्यांग बच्चों के साथ किस प्रकार का बरताव करती है उस ओर भी शिद्दत से विमर्श करती है। छुटपन में बच्ची को स्कूलों से इसलिए निकाल बाहर किया गया क्योंकि वो बोलते न बोलते हिचकी लेती है। चक चक करती है आदि आदि। उस पात्र को स्कूल से यह कहते हुए निकाला जाता है कि हम इसे क्यों निकाल रहे हैं उस वज़ह को हम नहीं बताएंगे। अंत में वह बच्ची न केवल स्कूलों से निकाल बाहर की जाती है बल्कि कक्षा में भी उसे अपने सहपाठी और शिक्षक की डांट और उपहास का पात्र बनना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर हमारी शिक्षा समावेशीकरण के सिद्धांत को तवज्जो देती है। इसी शैक्षिक दर्शन को मानते हुए विभिन्न निजी स्कूलों में मोटी फीस लेकर बच्चों को कहीं न कहीं आत्मकुंठा और बहिष्करण की मार झेलनी पड़ती है।

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