Friday, March 9, 2018

चलो दोस्तों ! बडोदरा शराफ् फाउंडेशन कौशल विकास केंद्र




कौशलेंद्र प्रपन्न
इन दिनों गुजरात के आणंद स्थित इंस्टीट्यूट आफ रूलर मैंनेजमेंट में प्रोग्राम मैंनेजमेंट एंड लीडरशीप प्रोग्राम करने करने का अवसर मिला है। सो आपको भी इस शैक्षिक यात्रा का आनंद दिलाता हूं। यदि आपकी रूचि है तो वास्तव में आपको भी आनंद आने वाला है।
विभिन्न सत्रों में विभिन्न प्रोफेसर के साथ बातचीत और विमर्श का मौका मिला रहा है। जिनमें संस्थान के निदेशक प्रो हितेश भट्ट की शैली कमाल की है। कहानियों के ज़रिए जिस साफगोई से कठिन से कठिन सिद्धांतों को समझा देते हैं। सच में एमबीए के कई पेचों को एक पल में खोल कर रख देते हैं। उन्होंने अपने लेक्चर में बताया कि कोई भी प्रोग्राम व प्रोजेक्ट बाद में विफल नहीं होता बल्कि प्रोग्राम के शुरू में ही बेहतर प्लानिंग, परिकल्पना, रणनीति, संभावित चुनौतियों के अनुमान न लगा पाने की वजह से देश में कई बड़ी से बड़ी योजनाएं और प्रोजेक्ट फेल हो जाते हैं। बल्कि हुए हैं। उनके इस उदाहरण से मैंने दिल्ली के यमुना पर बनने वाले सिग्नेचर ब्रिज का उदाहरण पेश किया। और कहा कि ओर वह ब्रिज है और दूसरी और डीएमआरसी है। दोनों की कार्यशैली तय करती है कि कौन सा प्रोजेक्ट समय पर खत्म होगा और किसमें विलम्ब होगा बल्कि हो रहा है। कहां तो सिग्नेचर ब्रिज को 2010 में पूरा होना था। जो आज भी जारी है। वहीं उसके बाद के डीएमआरसी के दूसरे प्रोजेक्ट न केवल पूरे हुए बल्कि सफलता पूर्वक चल रहे हैं।
इस कोर्स के अंतर्गत हमें बडोदरा के पास शराफ फाउंडेशन विजिट कराया गया। यहां की ख़ासियत यह है कि आस पास के ट्राइवल क्षेत्र के बच्चों और वयस्कों को कौशल दक्षता प्रदान की जाए। यानी हाथ का काम सीखाया जाए ताकि भविष्य में उन्हें नौकरी मिल सके। इस संस्थान में बच्चे और बच्चियां दोनों ही विभिन्न कोर्स में प्रशिक्षण हासिल कर अपना जीवन बेहतर जी रहे हैं।
गौरतलब हो कि जब वर्तमान प्रधानमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब उन्होंने राज्य भर में कई ऐसे केंद्रों की शुरूआत की थी जहां युवाओं को रोजगार मिल सके इसके लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। शराफ कौशल केंद्र की तारीफ करने के लिए नहीं लिख रहा हूं बल्कि इसलिए आज इसपर कहानी सुना रहा हूं ताकि इस सक्सेस स्टोरी को देख पढ़ और सुन कर हम अपने आस पास के युवाओं के सपनां को पूरा करने में मदद कर सकें।
मैंन उन युवाओं से पूछा कि आपका सपना क्या है? तो एक ने जवाब दिया नौकरी करना। वहीं दूसरे ने कहा परिवार को सुख देना आदि आदि। इस केंद्र में वो सब चीजें सिखाई जाती हैं जो आईटीआई में कोर्स हुआ करती है। अंतर बस इतना है कि इन बच्चों से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता। अगर हमारे युवा सपने देख रहे हैं तो उन्हें पूरा करना हम नागर समाज की जिम्मेदारी बनती है।  
 

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