Thursday, March 22, 2018

शिक्षा पर नहीं लिखूंगा पर लिखने से बच नहीं पाता




कौशलेंद्र प्रपन्न
रोज़ दिन मन कड़ा करता हूं। अपने आप से वायदा करता हूं कि आज शिक्षा और शिक्षक पर बिल्कुल ही नहीं लिखूंगा। मगर रोज़ ही ऐसी कुछ घटनाएं घट जाती हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ करने का मतलब है कहीं न कहीं हम अपनी जिम्मदारी से दूर भाग रहे हैं। फर्ज़ कीजिए हम शिक्षा जैसे मसलों पर बात नहीं करेंगे तो कौन करने वाला है। किसी को भी शिक्षा की बेहतरी से कोई ख़ास लेना देना है। हाल में ही एक लड़की ने आत्महत्या की। स्कूल प्रिंसिपल जिस गैरजिम्मेदराना तरीके से मीडिया के सवालों को जवाब दे रहा था उससे ज़रा भी नहीं लगता कि उसे किसी भी बच्ची या बच्चे से संवेदना रखता होगा। उसे स्कूल के बाजार से पैसे बनाने है चाहों तरीके जो भी हों।
वहीं कई बार आपको और हमें राह चलते कुछ ऐसे भी टीचर और टीचिंग संस्थाएं हमें अपनी ओर मोड़ लेती हैं। ऐसी ही एक संस्था है सेंटर फोर सोशल एंड कल्चरल प्रशिक्षण,यहां देश भर से कलाकार, बच्चे, टीचर, गुरु आदि छात्रवृति पाते हैं। साथ ही विभिन्न राज्यों के टीचर और बच्चों को पूरे साल छात्रवृति देकर उनकी प्रतिभा को बढ़ावा दिया जाता हैं। यहां की चयन प्रक्रिया में कलाकारों और प्रतिभावान बच्चां, टीचर, मेंटर आदि को प्रोत्साहित किया जाता हैं।
फर्ज़ कीजिए एक ऐसा हॉल हो जहां कर्नाटक, असम, ओड़िसा, बिहार, तमिलनाडू, केरल आदि प्रांतों से बच्चे और शिक्षक मौजूद हैं। इस हॉल में विभिन्न आयु और कक्षा, भाषा भाषी श्रोता हों तो आप उनसे किस भाषा में और किस स्तर पर बात करना चाहेंगे? क्या यह उतना आसान होगा जैसा एक सामान्य समूह में हो सकता है। निश्चित ही अपने आप में एक चुनौतीभरा काम रहा होगा।
इस मायने में मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मान सकता हूं कि हाल ही में ऐसे ग्रुप के साथ पूरे दिन बातचीत करने और सीखने का अवसर मिला। कितनी कमाल की बात है कि पूरे दिन आप अपनी मूल भाषा भूल कर दूसरी भाषा को संप्रेषण का माध्यम चुनते हैं। इसमें ख़तरे हैं तो फायदे भी हैं। आप अपने आप को भी चेक करते रहते हैं कि क्या आप चल सकते हैं या नहीं। े
जैसा कि पहले कहा कि इस ग्रूप में दस साल से लेकर पचास साल तक से बच्चे और किशोर और वयस्क थे। विभिन्न भाषा भाषी। जब दस वर्षीय अर्थव ने कहा मैं तो बहुत इन्ज्वाय किया। आप जैसे पढ़ाया बहुत बहुत अच्छा लगा। वहीं प्रसन्न ने कहा कि मेरी भाषा हिन्दी नहीं है। मेरे को यह अच्छा लगा कि आपने हम सभी को एक परिवार की तरह से बना दिया। पहले हम अलग अलग थे। हम किसी को जानते तक नहीं थे। लेकिन आपकी टीचिंग और एक्टिविटी ने हमें जोड़ दिया। आदि आदि। जब इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं आती हैं तो लगता है कि शायद आज मैंने कुछ अच्छा किया। उसपर भी जब लोग अपना लंच छोड़कर काम कर रहे हों और छुट्टी ने मांग रहो हों। समय हो जाने के बावजूद भी बैठे सुन और सुना रहे हों तो लगता है कि कुद अच्छा हो रहा है। शिक्षा में अच्छा भी काफी हो रहा है और ख़राब भी। ख़राब को जल्दी लोग जान जाते हैं और अच्छाई थोड़ी देर लेती है।

3 comments:

Unknown said...

लिखते रहिये हम पढ़ते रहेंगे

BOLO TO SAHI... said...
This comment has been removed by the author.
BOLO TO SAHI... said...

Shukriya Megha ji. Hausla badhaya aapne

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