Friday, August 25, 2017

कोर्स कुछ, जॉब कुछ और किया जिंदगी यूं ही जीया



कौशलेंद्र प्रपन्न
उन्होंने पीएचडी की। की भी तो अच्छे संस्थान से। पीएचडी के बाद उन्होंने बी.एड भी कर डाली। सोचा कम से कम स्कूल मास्टर तो बनना तय है। लेकिन स्कूल ने लेने से मना कर दिया। आप पीएचडी जो थे। प्रिंसिपल दबाव में आ गई। हमें इतने पढ़े लिखे की जरूरत नहीं। ऐेसे लोग सवाल ज्यादा करते हैं।
बी ए के बाद वो दुकान पर बैठा करते हैं। नून तेल, क्रीम बेचा करते हैं। सोचा था कि जिंदगी में वैज्ञानिक बनेंगे। लेकिन बन गए दुकानदार। वैसे दुकानदार बनने में भी कोई हर्ज नहीं। फिर कॉलेज में समय क्यों जाया किया।
एम एस सी की। फस्ट क्लास से पास किया। सोचा लाइब्रेरी साइंस का कोर्स कर लें। कम से कम स्कूल, कॉलेज में किताबों के बीच रहा करेंगे। क्योंकि आंखों से देख रखा था उन्होंने कि पीएचडी किया हुआ उनके कॉलेज में लाइब्रेरी प्रोफेशनल काम कर रहा था। कई कॉलेज में पढ़ा चुकने के बाद भी कॉलेज ने उन्हें नहीं अपनाया। आखिर में रोटी किताब घर दे रही थी।
हमारे आस पास कई रायबहादुर हुआ करते हैं एक राय मांगों उनके पास हजारां रायें मिल जाएंगी। खुद तो कुछ कर नहीं पाए लेकिन राय देने का काम बखूबी करते हैं। राय देने की लत जो कहिए कुछ भी कोर्स बता देंगे। और मानने वाले पहले से ही कन्फ्यूज होते हैं कि अंत में झक मार कर बताए गए कोर्स में दाखिल हो जाते हैं। बेशक उनका मन लगे न लगे। उनपर हुआ सरकार का खर्च तब बेकार हो जाता हैजब वे अपने कोर्स के अनुरूप उसी क्षेत्र में काम नहीं करते। एक प्रोफेशनल को बनाने में सरकार और अपने बाप की भी अच्छी लागत आती है।आज यह कहावत सही लगती हैकि पढ़े फारसी बेचे तेल।यानी पढ़ाई के अनुसार जॉब न करना व नहीं मिलना।
आज ऐसे युवा और प्रौढ़ खूब मिलेंगे जिनकी रूचि कुछ पढ़ने की थी किन्तु कुछ कारणों से वे पढ़ नहीं पाए। जो पढ़ाई की उसमें नौकरी का अवसर नहीं मिला। बस जिंदगी में रोटी मिल रही है।जिंदगी इन ख्यालों में कटरहीहै कि हम भी तो तुरम्मखां थे। आज हम भी वहां होते जहां फलां दोस्त है।



1 comment:

Unknown said...

Sir ye halat aaj ke samaj aur system ki sachhai baya karte hai aap akele nahi hai kafi log is kishti pe sawar hai

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