Monday, August 21, 2017

जो लिखेगा वो छपेगा



कौशलेंद्र प्रपन्न
श्रीकान्त वर्मा की कविता की पंक्ति उधार ले कर कहूं तो जो रचेगा वो कैसे बचेगा। जो बचेगा वो कैसे रचेगा।
जे लिखेगा वो छपेगा। जो लिखेगा ही नहीं तो छपेगा कैसे? छपने के लिए लिखना पड़ता है। और लिखने के लिए छपना भी जरूरी है। छपने से लेखक का मनोबल बढ़ता है। जैसे जैसे लेखक लिखने लगता है वैसे वैसे वह छपने भी लगता है। छपते भी वही हैं जो अपने लेखन में स्तर और गुणवत्ता को बनाए रखते हैं। हालांकि कई बार बड़े बड़े लेखक की रचनाएं भी कई बार निराश करती हैं।
लिखने के लिए कंटेंट की आवश्यकता होती है। कई बार कंटेंट बेशक खराब हो लेकिन लेखक अपनी दक्षता, कौशल और शैली की बदौलत खराब से खराब कंटेंट को भी पठनीय बना देता है। हजारी प्रसाद द्विदी ने तो कुटज, नाखून क्यों बढ़ते हैं जैसे निबंध लिख डाले।
छोटी छोटी चीजों पर भी लेखकों ने अपनी शैली और अभ्यास से पठनीय बना दिया। दरअसल लेखन भी एथलीट और खिलाड़ियों की तरह होता है। रोज दिन लेखन के अभ्यास से लेखनी निखरती है। बिना अभ्यास के खिलाड़ी मैदान में ज्यादा दिन नहीं ठहर सकता।
लेखक भी रोज लिखता-पढ़ता रहता है तो उससे उसकी लेखनी और वर्तमान लेखनी से वाकिफ रहता है। वह अपनी शैली को अभ्यास और अध्ययन से पैना करता रहता है। मजे मजे में और केवल आनंद के लिए लिखने वाले एक ख़ास समूह तक ही पहुंच पाते हैं। सर्वजनीन बनने के लिए शैली और कंटेंट के साथ बरताव अहम हो जाता है।

3 comments:

Pallavi Sharma said...

Really motivating

zindagi said...

Likhte rahe, nice and true

darpan mahesh said...

sahi bat kahi hai kaushalendra ji ne.

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