Thursday, August 24, 2017



स्कूल की दीवार
कौशलेंद्र प्रपन्न
सीमा पर दीवारें, कांटे, तार दिखें तो अचरज नहीं होता। एक डर वहां पर काम करता है। सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होती है। अनधिकार प्रवेश की िंचंता और असामाजिक व्यक्तियों की आवाजाही न हो यह हमारी प्राथमिकता होती है।
स्कूल में उंची उंची दीवारों, कटिले तारों का मुरेठा बांधे खड़ी दीवारें हमें डराती हैं। गोया बच्चे न हुए किसी कैदी के साथ हम बरताव कर रहे हैं। कहीं वे भाग न जाएं। कहीं बाहर से कोई आ न जाए।
देश के तमाम स्कूलों में यह नजारा देखा जा सकता है। सरकारी हो या निजी हर स्कूल की दीवार उंची हुआ करती है केवल उंची हो तो समझी जा सकती है लेकिन उन दीवारों के मुरेठे कटिले तारों से बंधे होते हैं।
गांव व शहर के स्कूलों में जिनके पास दीवारें एवं गेट नहीं हैं वहां बडे आराम से आस पास के लोग अपना ऐशगाह बना लेते हैं। साथ ही गाय,भैंस वहीं चरती विचरती हैं। ताश के खेल नशाकेंद्र में तब्दील होते देर नहीं लगती।
स्कूल और बच्चों की सुरक्षा के लिए दीवार और गेट लाजमी हैं। हो भी क्यों न कई सरकारी स्कूलों की दीवार फांदते बच्चे शहर और महानगरों में देखे जाते हैं। कंटिले तार इसी लिए लगाए जाते हैं ताकि बच्चे आसानी से दीवार लांघकर बाहर न जाने पाएं।
सवाल यह उठता है कि स्कूल क्यों ऐसा माहौल मुहैया नहीं करा पाता कि बच्चे स्कूली की दीवार ही न फांदें। क्यों बच्चों को स्कूल अपनी ओर नहीं खींच पाते? यदि स्कूल रोचक और आनंददायी हो जाएं तो संभव है हमारे स्कूल बिना दीवार के हो जाएं। तभी शायद बच्चे स्कूल से बाहर नहीं बल्कि स्कूलों में अपनी कक्षाओं में मिलेंगे।

1 comment:

Meri ladli sarkar said...

बिल्कुल सही कहा सर आपने।

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