Wednesday, August 23, 2017

कि टेरेनवा बैरी ना



कौशलेंद्र प्रपन्न
भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी में जिस शिद्दत से नाटक और गीत लिखे उसका तोड़ सच में नहीं है। टिरेनवा बैरी ना यह गीत भी बहुत दिलचस्प है। पिया को लिए जाए रे... टिकसवा पानी बुनी में बिला जाए रे, टिरेनवा न आए आदि की प्रार्थना नायिका करती है। नायिका की नजर में पति को टिरेनवा चुरा कर ले जा रही है। कलकता जा कर काली जादूगरनी के फेर में पति फंस जाएगा। कुछ ऐसे भावों को भिखारी ठाकुर ने गूंथा है।
कैफियत एक्सप्रेस भी बेचारी पटरी से उतर गई। पिछले हप्ते मुज़फ्फरनगर के पास टिरेनवा जमीन पर लेट गई। दोनां ही घटनाओं में लोगों की जानें गईं। अब आप ही बताएं एक विरहिनी क्यों न टिरेनवा को बैरी बताए। न जानें कितनी ही सांसें सदा सदा के लिए थम गईं। अब वे नहीं उठेंगे।
केई अपने बच्चों से मिलने परदेस से घर जा रहा होगा। किसी के बैग में खिलौने, चूड़ी, लहटा,उम्मीदें, ठिकोलियां रही होंगी। जो अब नहीं गूंजेंगी। कभी नहीं गूंजेंगी। कोई नौकरी के लिए निकला होगा गावं देहात छोड़कर। उसका का जग ही छूट गया।
उन टिरेनों में कितनी ही यादें, सपनें, उम्मींदें, सिसकियां और खेल-खिलौने खामोश हो गए। अब वे आंकड़ां और मुआवजों की गुहार में जिंदा होंगे।
टिरेनवा बैरी ही तो ठहरी। वैसे आती होगी खुशियों के संग लहराती हुई भी। कई के लिए पिया को लेकर आती है। और कई बार पिया को सदा के लिए चली भी जाती है।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...