Tuesday, August 29, 2017

बहुभाषिकता और प्राथमिक कक्षा में शिक्षण




कौशलेंद्र प्रपन्न
प्रो. निरंजन सहाय, हिन्दी विभाग काशी विद्या पीठ में प्राध्यापक, ने बहुभाषिकता पर बोलते इस ओर इशारा किया कि भारत विविध भाषा-भाषी देश है। यहां एक भाषा की मांग करना और मानक भाषा के नाम पर अन्य भाषाओं को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। राष्टीय भाषा की मांग और स्थानीय भाषा की उपेक्षा हमारी कक्षाओं और स्कूलों में होती हैं।
स्थानीय भाषा और मानक भाषा कहीं न कहीं गंभीर मसला है इसे संविधान की नजर से भी देखने की आवश्यकता है। संविधान में शामिल और मानित 22 भाषाओं के एत्तर भी तो भाषाएं हैं जिन्हें स्कूली पाठ्यक्रमों और पढ़ने पढ़ाने दूर किया जाता है। यही कारण है कि सूची से बाहर खड़ी भाषाएं कभी भी स्कूली शिक्षा के अंग नहीं बन पातीं।
प्रतिभागियों के सवालों के जवाब प्रो. सहाय ने बड़ी शिद्दत से दिया। उन्होंने कहा कि मानक भाषा और स्थानीय भाषा में अंतर होना लाजमी है। जैसे प्रेमचंद और प्रसाद की भाषा में। हालांकि दोनों ही एक समय के लेखक रहे हैं। वैसे ही तुलसी और सूर की, जायसी की आदि की भाषा अवधि होते हुए भी स्थानीयता को लिए हुए है।
हमें कक्षा में बहुभाषिकता का सम्मान करना होगा। साथ बहुभाषिकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
इस व्याख्यान माला में केंद्रीय शिक्षा संस्थान के डॉ. वंदना सक्सेना, पीएचडीत्र एम फिल के छात्रों के साथ ही पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अध्यापक उपस्थित थे।

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