Friday, August 4, 2017

घुरनी बोली उठी...



कौशलेंद्र प्रपन्न
तीन महीने बाद ही सही लेकिन घुरनी ने आवाज तो उठाई। ऐसी आवाज की लोगों को विश्वास नहीं था। सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। वैसे घुरनी नहीं चाहती थी कि उसकी शिकायत लिखित में की जाए। लेकिन उसे मैनेजर ने हौसला बढ़ाया कि आवाज को लिख कर उठानी चाहिए और लिख कर दे गई अपनी आपबीति।
फरमान भी जारी हो गया। उसे समिति के सामने पेश होना हुआ। सवालों, शंकाओं और शक की चार गुणा दो यानी आठ आखें उसकी ओर उठ रही थीं। तो आपने ऐसा क्यों किया? आपके खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है। आप तो हमारे ख़ास कर्मी रहे हैं। आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी। लेकिन ऐसा हुआ। आप क्या कहना चाहेंगे?
आप बोलते रहिए। क्या हम आपकी बात को रिकार्ड कर सकते हैं?
और वो एक रव में बोल रहा था। बोल रहा था उन तमाम घटनाओं की तहें खुल रही थीं। कब कैसे और किस हालात में ऐसी घटना घटी।
उसने बताया कि उसका मकसद घुरनी को चोट पहुंचा नहीं था। न भावनात्मक और न शारीरिक। लेकिन घुरनी मेरे व्यहार से चोटिल हुई। तभी तो यह बात यहां पहुंची। मुझे एहसास है कि मुझसे गलती हुई। गले लगाना और उसे गले लगाना तक तो ठीक था। लेकिन एक दिन गले लगाने की भाव दशाओं में गंदलापन आ गया। मैं स्वीकार करता हूं।
वह बोले जा रहा था। और आंखें भी उसकी बातों और भावों को साथ दे रही थीं। सामने बैठे चारों लोगों की आंखें भी बीच बीच में नम हो जातीं। क्योंकि जो बातें कही जा रही थीं उसमें एक पश्चाताप के ताप दिखाई दे रहे थे।
उसने कहा कि मुझसे गलती हुई। इसके लिए जो भी सज़ा सही लगे सदन के हाथ में है।
... और वो चुप हो गया।
सुना गया कि उस समिति में अपनी बात रखने के बाद वो वहीं नहीं रूका। न वो घर गया। और न दफ्तर। उसे कहा गया आप तब तक दफ्तर नहीं जाएंगे जब तक आपको कहा न जाए।
वो कहां गया किसी को भी मालूम नहीं। न उसके घर वालों को और दफ्तर वालों को। सभी की उत्सुकता बढ़ने लगी। घर वाले बेचैन उसे तलाशते रहे।
जब घुरनी को वो चार दिन तक दफ्तर में नहीं दिखा तो एक संतोष हुआ कि लगता है उसे रफा दफा कर दिया गया। लेकिन जब उसे पता चला कि वो गायब हो गया। कहां गया किसी को भी नहीं पता।
अब घुरनी थोड़ी उदास सी रहने लगी। उसने ऐसा तो नहीं सोचा था। और न ही ऐसा कुछ चाहा था। उसने तो बस उसे सबक सीखाने की चाही थी। घुरनी को एहसास था कि वो स्वभाव से गलत और खराब नहीं है। वो माहौल ऐसा बना कि उससे गलती हो गई। लेकिन इतनी बड़ी घटना भी नहीं थी कि उसे इतनी बड़ी सज़ा दी जाए।
हप्ता बीता, महीने गुजर गए। अब उसकी जगह पर कोई और बैठा करता है। अब उसके सिस्टम पर कोई और काम करता है। जब भी की पैड की आवाज आती है घुरनी को उसकी याद आती है।
लेकिन अब वो कहीं नहीं है। कहीं नहीं मतलब कहीं नहीं। बस उसके लिखे कुछ कतरे अभी भी दफ्तर में कहीं उसकी याद दिला जाती है। जिसे देखना नहीं चाहती। और कई बार उन शब्दों को पढ़़ भी लेना चाहती है। क्या लिखा करता था। कमाल है।


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