Wednesday, August 30, 2017

विश्वविद्यालय की छटपटाती अकादमिक आत्माएं यानी ताबूत की पहली कील




कौशलेंद्र प्रपन्न
विश्वविद्यालय है या मॉल्स, पांच सितारा होटल? कहां से कहां तक का सफ़र तय किया है हमने? इन पांच सितारानुमा संस्थानों में कौन पढ़ते हैं?
डॉ प्रज्ञा की कहानियों के पाठक जानते हैं कि प्रज्ञा अपनी कहानियों में यथार्थ को इस कदर पीरोती हैं कि वो इतिहास का दस्तावेज़ बन जाता है। इसी कड़ी में विश्वविद्यालयी उच्च शिक्षा के आंगन में किस प्रकार प्राइवेट पब्लिक इंटरवेंशन हो रहे हैं उसे करीबी से महसूसा और कलमबद्ध किया है। यह कहानी दरअसल अकादमिक की छटपटाहट को ज़बान देने की कोशिश है। ताबूत की पहली कील कहानी वास्तव में विश्वविद्यालय में बाज़ार और वैश्विक गैर शैक्षिक ताकतों का प्रवेश काल की चालों का कागज पर उतारा गया है। प्रो अनिल सद्गोपाल 1989-90 के दौर को याद करते हुए कहते हैं कि 1989-90 में विश्वविद्यालय के तमाम अकादमिक दल ने बिना किसी विरोध के खामोश होकर स्वीकार किया। इसी का परिणाम है कि आज हमारे विश्वविद्यालय वैश्विक बाजार के तय मापदंड़ों पर खुद को बदलने के लिए विवश हैं। लेकिन इस कहानी में डॉ रमन बड़ी शिद्दत से इस बदलाव और पीपीपी का विरोध करते हैं।
द्वंद्व में जीने वाला डॉ रमन अंत में वही रास्ता चुनता है जो उसके लिए अभिष्ट है। साथ प्रो. साथी उस रमन को जानते थे जो खुल कर शिक्षा-शिक्षण को तवज्जो दिया करता था। लेकिन जब डॉ रमन पर प्रशासन व प्रबंधन समिति दबाव बनाती है कि वो शिक्षक,बच्चां के पक्ष में सोचने की बजाए प्रबंधन के हिस्से की सोचें। डॉ रमन का आत्म संघर्ष जीतता है और अह्ले सुबह अपना इस्तीफा फेज देते हैं। लेकिन इस पत्र की व्याख्या और रूप में की जाती है।
डॉ रमन का जाना दरअसल एक अकादमिक का प्रबंधन से दूर होना है। प्रबंधक हमेशा प्रबंधन की भाषा बोलते और समझा करते हैं। आनन फानन में एक ऐसे विश्वास पात्र धड़ को चुनता है जो प्रबंधन के आगे बिछने में गुरेज नहीं करता। अकादमिक समूह कॉलेज के सौदर्यीकरण में जुट जाते हैं। अपने कॉलेज को बेहतर ग्रेड मिले इस लालसा में हॉस्टल के मलबे को ढक दिया जाता है।
और अंत में कॉलेज को ए ग्रेड मयस्सर होता है। चारों ओर खुशियां ही खुशियां। लेकिन डॉ रमन अपनी आंखों के सामने तमाम मंजर को देख रहे हैं और एक ख़त लिखते हैं जो डॉ प्रज्ञा की सृजनशील मना का परिचय देता है। पठनीय तो है ही यह कहानी साथ ही जो शोध छात्र विश्वविद्यालय के आंगन में पीपीपी के प्रवेश और परिणामों का अध्ययन करना चाहते हैं उनके लिए एक अच्छा सुगठित दस्तावेज़ साबित होगा।

3 comments:

प्रज्ञा said...

इस कहानी की तह तक पहुंचने और इस कथ्य के साथ इतनी गहराई से जुड़कर पूरे माहौल और उच्च शिक्षा के परिवेश को आपने बहुत सार्थक ढंग से व्यक्त किया।

Meri ladli sarkar said...

बहुत अच्छा सर जी।

Neha Goswami said...

आपकी समीक्षा पढ़कर कहानी पढ़ने का मन हो रहा है।

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