Monday, July 31, 2017

बच्चों की निर्माणाधीन दुनिया



कौशलेंद्र प्रपन्न
हमारे बच्चे एक ऐसे देश-दुनिया में रह रहे हैं जहां संवेदना से कोई वास्ता नहीं है। किसी के पास संवेदना न तो बची है और न ही किसी को इससे कोई दरकार है। हमसब एक यूटोपिया में जीने वाले वासी हैं। आभासीय दुनिया में दोस्तों की संख्या, कमेंट और पसंद को वास्तविक मान चुके हैं।
दूसरे शब्दों में हमने अपने आसपास एक ऐसी आकाशीय दुनिया रच ली है जिस हमेशा हमें लुभाती है। जबकि हम सब को पता है कि उनके लाइक और कमेंट से कुछ होना जाना नहीं हैं। बस कुछ देर के लिए हमें यह संतोष होता है कि अच्छा उन्होंने लाइक किया और फलां साहब ने तो देख कर भी मुंह बिचका लिया।
दरअसल, आभासीय दुनिया में हमारे बच्चे भी सांसें ले रहे हैं। जितना एकाउंट सोशल मीडिया पर बड़ों के हैं उससे थोड़े ही कम बच्चें के होंगे। बच्चे भी घर से छुप छुपा कर अपने फेसबुक एकाउंट चेक करते हैं। वहां गर्ल फैं्रड बनाते हैं। उनसे रात रात भर चैट्स करते हैं। कहने को स्कूल के होमवर्क्स में बिजी शो करते हैं। क्योंकि बहाना उनके पास है कि स्कूल वाले एसाइन्मेंट ऑन लाइन भेजते हैं। उन्हें पूरा कर भेजना होता है। आप मना भी नहीं कर सकते।
प्रेमचंद और अन्य कथाकारों ने बच्चां की दुनिया को बड़ी ही शिद्दत से रचने,समझने की कोशिश की है। वह मंत्र कहानी हो या फिर सुदर्शन की कहानी हार की जीत, नमक का दरोगा हो या ईदगाह, उसकी मां कहानी हो या फिर पुष्प की अभिलाषा कविता इन रचनाओं में हमें बच्चों की दुनिया को समझने और गढ़ने की समझ मिलती है। विभिन्न कथाकारों और कवियों ने बच्चों को केंद्र में रखकर कहानियां और कविताओं की रचना की। लेकिन जैसे जैसे बाजार प्रभावी होता गया वैसे वैसे बाल लेखन में कथाकारों की रूचि कम होती चली गई। प्रसिद्ध कथाकार स्वयं प्रकाश को इस वर्ष का साहित्य अकादमी का बाल कथाकार पुरस्कार के लिए चुना गया है उन्होंने कहा कि बाल कथा लेखन में बड़े लेग रूचि नहीं ले रहे हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि हमारे लेखक, कवि कथाकार भावी पीढ़ी के लिए लिखना छोड़ चुक हैं।
वहीं प्रकाश मनु, क्षमा शर्मा, रमेश तैलंग, दिविकि रमेश, पंकज चतुर्वेदी जैसे लेखक आज सक्रियता के साथ बाल साहित्य की रचना कर रहे हैं। गौरतबल है कि प्रो. कृष्ण कुमार ने इन पंक्तियां के लेखक को इस सदी के शुरू में सुझाव दिया था कि बाल लेखन में गंभीरता से लेखने वालों की कमी है। यदि कोई इस क्षेत्र में आना चाहता है तो उसे धैर्य से दस बीस पंद्रह साल लेखन करने पर स्थान हासिल हो सकता है। और वो दिन और आज का दिन इन पंक्तियों के लेखक ने बाल साहित्य रचना को अपनी पहली प्राथमिकता बनाई।
हमें यदि बच्चों की दुनिया को बेहतर बनाना है तो उन्हें बेहतर साहित्य देना होगा। बेहतर साहित्य का तात्पर्य महज नीति परक, शिक्षाप्रद कहानियों से नहीं है बल्कि उन तमाम साहित्य से है जो बच्चों में सम्यक् दृष्टि पैदा कर सके। वैज्ञानिक सोच के बड़े पैरोकार प्रो. यशपाल ने पूरी जिंदगी बच्चों की शिक्षा में लगा दी। उनका भी जोर बच्चों में वैज्ञानिक सोच के विकास पर रहा। साथ ही बस्ते के बोझ को कम करने पर रहा।

2 comments:

Meri ladli sarkar said...

बिल्कुल सही सर। अच्छा साहित्य ही अच्छे विचारों की जनक होती हैं

Pallavi Sharma said...

Bal patrikaye BHI us purane star se neeche Aati Ja ri Han,jo pehle Hua karta tha ..shayad iska karan bal pathko ki kami ha ...ya ye dono baate paraspar ek dusre ko nakaratmak drishti se prabhavit kar rahi Han

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