Tuesday, July 18, 2017

उदारता किस चिड़िया नाम है जी


कौशलेंद्र प्रपन्न
हम जैसे जैसे बड़े और समृद्ध होते जा रहे हैं वैसे वैसे हम अपनी उदारता खोते जा रहे हैं। उदार मन से किसी की न तो प्रशंसा करते हैं और न किसी को प्रोत्साहित। हम एक ख़ास विचार और भावों के घेरे में जीने लगे हैं।
यह जीवन ख़ासकर हमने बाजार से सीखी है। जहां हर चीज बिकाउं है। भाव हो या संवेदना। सब की कीमत बाजार तय करती है। ऐसे में आप किसी के बारे में क्या ख्याल रखते हैं वह ज्यादा मायने नहीं है। बल्कि बाजार के तय नियमों और उपहार क्या देते हैं। इसी पर निर्भर करता है रिटर्न गिफ्ट।
सोशल मीडिया में जहां हम सभी को अभिव्यक्ति की पूरी छूट है। वहीं हमारे संवेदनाएं और भावनाएं कहीं सीमित भी हुई हैं। हम इतने उदार नहीं रह गए कि यदि केई आपकी पोस्ट, कंटेंट को लाइक व कमेंट नहीं करता तो हम मान लेते हैं कि फलां हमारे साथ नहीं है। ढिमका को हमारी बात नागवार गुजरी। यही हाल वाट्सऐप का है। यदि किसी ने देख कर भी आपको नोटिस नहीं करता तो हम नाराज़ हो जाते हैं। हम तुरंत तुलना करने लगते हैं कि उसकी पोस्ट या कंटेट को तो आप तुरंत लाइक करते हैं। लेकिन वो ऐसा नहीं करता। कई बार यह एक बड़े मनमुटाव का कारण भी बन बैठता है।
विचार करने वाली बात यह हो सकती है कि संभव है फलां उस वक्त व्यस्त रहा होगा। संभव है उसने देख तो लिया लेकिन लिखना जरूरी न समझता हो। वजहें बहुत होती हैं रिश्ते बनाने के पीछे तो कारण कई होते हैं रिश्तों में ठंढ़ापन आने में। हमें यह समझना होगा कि किसकी क्या प्राथमिकता है और किस रिश्ते को कितना तवज्जो देता है।
कम से कम उदार होना एक स्तर तक बेहतर होता है। लेकिन जब बार बार दूसरे पक्ष से उदारता से उलट व्यवहार मिलते हों तो व्यक्ति ज्यादा समय तक अपनी उदारता की रक्षा नहीं कर पाता।

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