Tuesday, July 25, 2017

शिक्षा में बजट की मांग और नागर समाज



शिक्षा को ताकत देने में आर्थिक बजटीय सहयोग खासा महत्वपूर्ण है। ख़ासकर प्राथमिक शिक्षा को बचाना है तो हमें अपने सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत शिक्षा में खर्च करने की आवश्यकता पर कोठारी कमिशन से सिफारिश की थी। यह बात 1966 की है। साथ 1986 की शिक्षा नीति भी इस बात को शिद्दत उठाती है।
1986 और आज 2017 तकरीबन तीस सालों में हमने अपनी शिक्षा पर महज 0.3 प्रतिशत ही खर्च कर रहे हैं। कल्पना करना कठिन नहीं है कि शिक्षा को 6 प्रतिशत देने की बात तब की जा रही थी अब उस अनुपात से कितना दिया जाना चाहिए। आर. गोविंदा, प्रो. कृष्ण कुमार जैसे शिक्षाविद्ों की मानें तो शिक्षा को आग बढ़ाने में आिर्थ्ाकी सहभागिता बेहद दरपेश है।
सर्व शिक्षा अभियान, माध्यमिक शिक्षा अभियान आदि मदों में शिक्षा को पैसे मिलने के प्रावधान हैं। लेकिन आज हकीकत यह है कि जो पैसे शिक्षा में खर्च करने को मिलते हैं उसका बड़ा हिस्सा बिना खर्च केंद्र को लौट जाते हैं। इस पैसे वापसी के पीछे वजहें और हैं। कब पैसे केंद्र से राज्य सरकारों को मिलती हैं।
क्या बजट और शिक्षा की गुणवत्ता के बीच कोई रिश्ता है जिसे ठीक करने की जरूरत है? क्या बजट से हम शिक्षा के निहितार्थों को तय कर सकते हैं? आदि कुछ सवाल हैं जिनको भूलना नहीं चाहिए। निजी शिक्षा कंपनियों की ओर से गुणवत्ता जांचने के पैरामीटर और उनकी शिक्षण शास्त्रीय औजारों पर कृष्ण कुमार , प्रो. आर गोविंदा, प्रो प्रवीण झा जैसे शिक्षा शास्त्रियां से सवाल खड़े किए।
गौरतलब है कि शिक्षा में रोज दिन होने वाले नावचारों और हस्तक्षेपों से भी इसकी गुणवत्ता में गिरावट आई है। इसका सारा कसूरवार निजी संस्थानों और उनके प्रयासों को ठहराया जाता है। जबकि सरकार बड़ी ही तेजी से स्कूलों को बंद कर रही है। ऐसे में निजी क्षेत्र में काम करने वाले इन स्कूलों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन नागर समाज को यह स्वीकार नहीं है कि निजी कंपनियां सरकारी स्कूलां को अपने हाथ में लें। सोचना होगा कि इसमें सरकार की क्या चाल है और निजी कंपनियों के क्या हित सध रहे हैं।

4 comments:

Seema Sharma said...

बहुत अच्छा कैशलेन्द्र जी

Unknown said...

I agree with what you have highlighted in your article. Of course budget is a big thing decides the shape of education structurally and systemically but tbe crucial most factor that decides the shape of education is the teacher. We actually haven't done anything for teacher education.
If we want to prosper as a country, we need to put our best in teacher preparation. If that happens, there will be no looking back for us.

प्रणाम पर्यटन said...

अच्छी जानकारी कौशलेंद्र जी.

Rajesh Kumar Singh said...

Agree Kaushal Ji.. Great, useful info..

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...