Tuesday, November 27, 2018

पोस्टमैंन बनना पसंद है या कि सुरक्षाकर्मी






कौशलेंद्र प्रपन्न
किसी भी संदेश का वाहक बनना आसान है। संदेश को प्रेषक से लेकर पाने वाले के दरमियां उस पोस्टमैंन की कोई भूमिका होती है तो इतनी ही कि वह संदेश लेकर जा रहा है। कहा भी गया है कि संदेशवाहक अबंध्य होता है। यानी संदेशवाहक को न तो बंदी बनाया जाता है और न ही बद्ध किया जाता है यह कूटनीति भी कहती है। इसजिलए हनुमान को भी छोड़ने की वकालत की गई थी। वैसे ही इतिहास में कई कहानियां मिलेंगी। जब संदेशवाहक को बंधक नहीं बनाया गया है क्योंकि वह सिर्फ और सिर्फ अपने मालिक या राजा का संदेश वाहक है। उस ख़त व संदेश में क्या कंटेंट है उससे उसका कोई दरकार नहीं होता। उधर से संदेश लेकर अपने राजा व मालिक को सौंप देता है। मैंनेजमेंट के गुरु इसे कुछ और अंदाज़ में देखते हैं। प्रो. हीतेश भट्ट इसे मैंनेजमेंट की नज़र से देखते हैं और मानते हैं कि जब तक लीडर या मैनेजर महज संदेशवाहक यानी पोस्टमैंन की भूमिका में होता है वैसी स्थिति में जवाबदेही तय करना मुश्किल होता है। पोस्टमैंन अपना विवेक इस्तमाल नहीं करता। वह न तो तर्क करता है और न ही अपना पक्ष रखता है। दूसरे शब्दों में कहें तो पोस्टमैंन किस्म के मैंनेजर व लीडर न तो अपने कर्मचारियों के हित में कोई वकालत कर पाते हैं और न ही अपने और टीक के हक़ में अपनी बात रख पाते हैं। वहीं सुरक्षाकर्मी यानी जिसके कंधे पर जवाबदेही तय की जा सकती है। यदि हमारे कैम्पस में कोई अवैधतौर पर प्रवेश करता है तो उसकी जवाबदेही सुरक्षकर्मी की बनती है। यानी वह व्यक्ति तमाम गतिविधियों को जिम्मेदार होता है। यदि मैंनेजर व लीडर सुरक्षाकर्मी की भूमिका निभाता है जो कि निभाना चाहिए तो उस व्यक्ति के कंधे पर अपनी टीम और हर कर्मचारी की जवाबदेही अपने सिर पर लेता है।
किसी भी संस्था व देश की सीमा पर तैनात पोस्टमैंन व सुरक्षाकर्मी की भूमिका को समझें तो यही होगा कि एक मैंनेजर व लीडर भी अपनी कंपनी व संस्था का सुरक्षाकर्मी होता है जो अपनी जिम्मेदारी को तय करता है। यदि कर्मी समुचित काम नहीं कर रहा है, यदि टीम का सदस्य तय लक्ष्यों को हासिल करने में पिछड़ रहा है तो ऐसी स्थिति में वह पोस्टमैंन के मानिंद मैंनेजमेंट को अपनी कर्मी की कमियों और असफलताओं को सिर्फ संप्रेषित भर नहीं करता है। बल्कि वह लीडर अपनी जिम्मेदारी स्वीकारते हुए मानता है कि शायद उस व्यक्ति के चुनाव और दक्षता की पहचान में कहीं चूक हो गई। या फिर उसे विशेष प्रशिक्षण प्रदान कर हम अपनी टीम के लक्ष्य को हासिल करने योग्य बना सकते हैं। बस कुछ वक़्त की मांग करता है। दुबारा प्रो. हीतेश भट्ट जी के बिंब व अवधारणा को अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए सभार इस्तमाल कर रहा हूं कि किसी भी कंपनी व संस्था में हमें पोस्टमैंन नियुक्त करने से बचने की आवश्यकता है। वरना वह कंपनी व संस्था प्रगति करने की बजाए महज गतिशील होने का एहसास भर दे सकता है। वहीं जब सुरक्षाकर्मी को नियुक्त करते हैं तब वह सिर्फ और सिर्फ नौ से पांच की नौकरी भर नहीं करता है। और न ही वह अन्य कर्मियों के तर्ज पर सिर्फ सैलरी के लिए काम किया करता है। बल्कि वह कंपनी, संस्था व घराने की ऊंचाई के लिए जी जान लगा देता है।
हमें किसी भी संस्था व कंपनी को विकास और वृद्धि के राह पर लेकर जाना है तो कर्मचारियों के चुनाव के वक़्त काफी सावधानी बरतनी चाहिए। साथ ही समय समय पर उनके कार्य करने की गति और रवैये को भी जांचना और परखना होगा। यदि कोई कर्मी किसी ख़ास समस्या में फंस गया है, उसे किसी भी किस्म की मदद नजर नहीं आ रही है तो ऐसे में हमारा सुरक्षाकर्मी यानी वैसे मैंनेजर व लीडर उस कर्मी के साथ खड़ा होता है। वह अपनी जिम्मेदारी से भी पीछे नहीं हटता कि फलां कर्मी क्यों बेहतर कार्य व प्रतिफल नहीं दे सका। वह स्थितियों और प्रक्रिया का विश्लेषण करता है और इस निर्णय तक पहुंचता है कि उस व्यक्ति को किस तरह की सहायता की आवश्यकता थी। जो किन्हीं वजहों से समय पर नहीं मिल पाई। वह हमेशा अपने ऊपर के मैंनेजमेंट के समक्ष अपना पक्ष और कर्मी की स्थिति से रू ब रू कराता हैं। वह वकालत करता है कि फलां कर्मी को कुछ और वक़्त दिया जाए और देखा जाए कि क्या तमाम मदद के बाद भी वह प्रदर्शन कर पा रहा है या नहीं।

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