Friday, November 16, 2018

चुनाव में मीडिया



कौशलेंद्र प्रपन्न
जब जब देश में कोई भी चुनाव होता है तब तब मीडिया के रूख़ बदलते नज़र आते हैं। मीडिया यानी पिं्रट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों के ही चरित्र को समझना दिलचस्प होगा। कवर स्टोरी से लेकर, इन्टरव्यू, फीचर, ख़बरें, आम सभाओं को कवर करती स्टोरी पूरे अख़बार में छाई रहती हैं। इन राजनीतिक ख़बरों, हलचलों, आम सभाओं, राजनेताओं के साक्षात्कारों से अख़बार और न्यूज चैनल लबालब भरे होते हैं। इन दिनों ख़बरों के चुनाव और प्रस्तुति की शैली, पेज का निर्धारणा आदि मीडिया के व्यापक सामाजिक दरकार की परतें खोलने लगती हैं। पहले पन्ने पर जिन ख़बरों को प्रमुखता से होना था कहीं अंदर के पन्नों पर सिंगल कॉलम या डब्ल कॉलम में नजर आती हैं। उन ख़बरों पर कितनों की नज़र पड़ती है इससे हमारा कोई ख़ास वास्ता नहीं होता। अख़बार या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इन दिनों अपने रिपोर्टर को विभिन्न राजनीति दलों के दफ्तारों और बीटों पर बांट देता है। हर राजनीति दलों के कुछ चहेते रिपोर्टर होते हैं जो प्रमुखता से उनकी ख़बरें किया करते हैं। ठीक वैसे ही गन माईक लेकर इन राजनीतिक दलों के दफ्तरों में प्रेस कॉफ्रेंस को कवर करते हैं। यहां प्रेस कॉफ्रेंस में जैसे सवाल जवाब हुआ करते हैं उन पर भी नजर डालना दरपेश होगा। हंसी ठिठोली से शुरू होकर सवालों तक की यात्राएं दिखाई देंगे। यहां शिकवे शिकायत भीं खूब होती हैं। तुमने हमारे उस सवाल के जवाब को ठीक नहीं छापा। बॉक्स में लेते तो ज्यादा प्रभावी होता आदि आदि।
चुनावी मौसम में अख़बारों के पन्नों पर बिखरी राजनीतिक ख़बरों के भार से समाज की अन्य प्रमुख घटनाएं, गतिविधियां कहीं दब जाती हैं। वह चाहे शिक्षा, कृषि, विज्ञान, संस्कृति या फिर व्यापार की ही क्यों न हो अपनी मौत मर जाती हैं। अख़बारी भाषा में कहें तो किल कर दी जाती हैं। कई बार ख़बरें मार दी जाती हैं तो कई मर जाती हैं। ख़बर की भी अपनी एक गति और जीवन होता है। तत्काल प्रभाव और असर वाली ख़बरें यदि समय पर नहीं लगीं तो वो फिर अगले या उससे अगले दिन उसकी प्रासंगिकता ही खत्म हो जाती है। लेकिन हमें इसकी चिंता ज़्यादा नहीं होती। हमारी चिंता इस बात की होती है कि यदि फलां दल की ख़बर, आम सभा कवर नहीं किया गया तो मीडिया को संभव है कोपभाजन का शिकार न होना पड़ जाए। यदि अख़बार ने किसी ख़ास दल की गतिविधियों, आम सभाओं को कवर नहीं करने पीछे रह जाए तो संभव है तत्काल विज्ञापन पर रोक लग जाए। अख़बारों में छपने वाली राजनीतिक ख़बरों की प्रस्तुति पर नज़र डालें तो पाएंगे कि कई बार एक सिंगल कॉलम की ख़बर भी आधे पेजे की ख़बर पर भारी पड़ती है। 

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...