Monday, November 19, 2018

अपनी ही नज़रों में गिरता रहा



कौशलेंद्र प्रपन्न
‘‘अरे तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी। समझ नहीं आती तुम्हें कि मैं तुम्हें प्यार व्यार नहीं करती। क्यों मेरे पीछे पड़े हो?’’
यह वाक्य आज भी उसके कानों में बजते हैं। हालांकि उसे पुरानी जॉब छोड़े तकरीबन पांच साल हो गए। लेकिन उस लड़की की आवाज आज भी उस ढीठ के कानों में बजा करती है। चाहकर भी आवाज से दूर नहीं जा पाता। कितना दफ़ा उसने चाहा कि भूल जाए या भुला दी जाए वो। लेकिन उसका जादू ही ऐसा रही कि दूर न जा सका। उसके साथ के किस्से अक्सर उसकी आंखों में पनीलापन छोड़ देते हैं। छोड़ जाती हैं उसके साथ के नोक झांक के पल भी।
उसने कभी लड़की का ग़लत नहीं चाहा। न वो उसे हल्के में लेता था। बात ही ऐसी थी कि वो उससे दूर नहीं जा सका। चिट्टी लिखी, मैसेज लिखे, ख़त कह लें क्या नहीं लिखा ।इन तमाम जरिए से अपने स्नेह और लगाव का इजहार किया।
बस ग़लती इतनी सी हो गई कि एक बार गले लगाने की मुहलत मांगी और गले लग कर कानों में कह दिया ‘‘आई लव यू’’
तमतमाई लड़की रूम से बाहर तो चली गई लेकिन उसके पीछे छोड़ गई एक दहकता हुआ सवाल और सवाल से भी बड़ा बवाल। देखते ही देखते उस तीन अल्फ़ाज़ों के ख़मियाजे भुगतने के लिए फरमान आए गए। शायद यह पहली बार हुआ था।
उसे इसकी ज़रा भी भनक नहीं थी कि मसला इतना गहरा और लहक रहा है। अगले ही हप्ते बोलचाल बंद। न देखा देखी और न बातचीत।
बातचीत तो तब भी नहीं हुई जब उसे उस तीन लेटर के लिए कमिटी में बुलाया गया। कहानी खुली तो लंबी कहानी निकली।
हाथ पांव जोड़े। माफी मांगी। आइंदा ऐसा वैसा नहीं करेगा कसमें खाईं और कानूनन कार्यवाई की वायदेनामा पर दस्तख़त किए। उस तीन शब्द ने उसे देखते ही देखते ज़लालत की स्थिति में ला खड़ा किया।
एक बार नजर उठा कर देखा भी उसने। लेकिन उन आंखों में परिचय की रेखाएं गायब थीं। था कुछ तो बस अपरिचय और हिकारत।
जो हो। वो लड़की आज भी याद आती है उसे। याद आए भी क्यों न उसका मनसा ख़राब नहीं था। उसने तो बस इतना ही चाहा कि जो रागात्मक रेसे उसके मन में हैं उसे भी एहसास कराए। न तो परेशान करना उसका मकसद था। और न किसी भी किस्म की दिक्कत पैदा करने की। बस यहीं मात खा गया। और अपनी ही नज़रों में गिरता रहा रोज़दिन।

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