Thursday, November 22, 2018

स्कूलों में हैं कंपनियां मगर...



कौशलेंद्र प्रपन्न
पिछले दिनों दिल्ली सरकार के प्राथमिक स्कूलों का अवलोकन का अवसर मिला। वो भी त्रिलोकपुरी, कल्याणपुरी आदि क्षेत्रों में जो स्कूल मौजूद हैं इन स्कूलों में शौचालय, पीने का पानी, खेल के मैदान, लाइब्रेरी सब कुछ हैं। अगर नहीं हैं तो बच्चे और पर्याप्त शिक्षक। जिन स्कूलों में कम से कम दस से पंद्रह स्टॉफ होने चाहिए यानी शिक्षक वहां चार या पांच शिक्षक हैं। जिन स्कूलों में नर्सरी क्लास हैं वहां आया मौजूद हैं। कायदे से शिक्षिका होनी चाहिए लेकिन शिक्षिकाओं की कमी को आयाएं पूरी कर रही हैं। अनुमान लगा सकते हैं कि जिन स्कूलों में आयाएं नर्सरी की क्लासेज मैनेज कर रही हैं वहां क्या होता होगा?
इन दिनों विभिन्न स्कूलों पीने का पानी की टंकी की ज़रूरत नहीं है लेकिन सरकारी फरमान जारी के तज र्पर हर स्कूलों में पीने का पानी की टंकी बनाई जा रही हैं। साथ ही गार्ड रूम बनाए जा रहे हैं। स्कूल में शिक्षक नहीं, आया नहीं, अन्य सहायक स्टॉफ नहीं लेकिन बार्ड रूम बनाना ज़रूरी है।
पिछले दिनों दिल्ली के दक्षिणी नगर निगम के स्कूलों को बंद कर दिए गए या फिर उन्हें अन्य स्कूलों में मर्ज कर दिए गए। तर्क जो दिए गए उन तर्कां पर हंसा जाए या रोया जाए कि इन स्कूलों में बच्चे कम हो रहे हैं इसलिए इन्हें बंद कर यहां पार्किंग बनाया जाएगा। सरकार की प्राथमिकताएं बताती हैं कि उन्हें बच्चों की शिक्षा से ज्यादा पार्किंग की चिंता है।
तमाम एनजीओ, सीएसआर कंपनियां इन स्कूलों में बेहतरी के लिए अपना योगदान दे रही हैं। जिनमें टेक महिन्द्रा फाउंडेशन, प्लान इंडिया, रूम टू रीड, सेव द चिल्ड्रेन आदि। ये कंपनियां कुछ स्कूलों मे ंतो अपने शिक्षक भी भेज रहे हैं जो कक्षाओं में शिक्षण काम भी कर रहे हैं। जो काम शिक्षा विभाग और सरकार के जिम्मे था उसे गैर सरकारी संस्थाएं कर रही हैं। इन तमाम हस्तक्षेपों के बावजूद एक बड़ी टीस यह उठती है कि फिर क्या वजह है कि बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते?

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