Friday, February 23, 2018

टीचर बहनों के नाम खुली चिट्ठी



कौशलेंद्र प्रपन्न
हालांकि मेरी कलाई पर कई बहनों ने राखी न बांधी हो। साथ में बचपन न गुजारी हों। साथ लड़ी-झगड़ी भी न हों। लेकिन उन हज़ारां बहनों के साथ मेरी रिश्ता तभी जुड़ गया जब उन्होंने शिक्षा और शिक्षण में कदम रखा। जब वे डाइट से या फिर बीएड कर रही थीं तब से हमारा रिश्ता बन गया था।
मेरी बहन पिछले कई दिनों परेशान थी। बल्कि है। वैसी ही मैं समझता हूं कई बहने परेशान होती होंगी जब उन्हें क्लास में पढ़ाने जाना होता होगा। जब उनकी क्लास ऑब्जर्ब की जाती होंगी। जब उन्हें कहा जाता होगा कि फलां तारीख को तैयार रहें आपकी क्लास ऑब्जर्ब की जाएगी।
हालांकि क्लास ऑब्जर्ब हो इसमें किसी को भी कोई एतराज़ नहीं हो सकती। लेकिन इस फरमान से उपजे तनाव और चिंता को हम कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। मेरी बहन तनाव में थी। उसकी िंचंता थी कि क्लास रूम ऑब्जर्ब होने हैं उसके लिए पाठ योजना कैसे बनाएं। कैसे क्लास में शिक्षण करें ताकि ऑब्जर्बर खुश हो जाए और अच्छे कमेंट दे कर जाए।
चिंता तो कुछ और होनी चाहिए थी कि मैं अपनी कक्षा को कैसे रोचक तरीके से पढ़ाउं कि बच्चे आनंदविभोर हो जाएं। बच्चां की सहभागिता इस तरह की हो कि बच्चे तो बच्चे मैम भी उसमें शामिल हो जाएं। लेकिन इसके लिए प्लानिंग की ज़रूरत पड़ती है। और प्लानिंग के लिए सोचना होता है। यही सोचने की आदत व चस्का हमारी टीचर बहनां और भाइयों को नहीं दी जाती।
बातचीत में बहने ने बताया कि उसकी कक्षा में बच्चे बहुत शोर करते हैं। उसकी कक्षा के बच्चे उसकी बात नहीं मानते। शांत नहीं बैठते आदि। बहन ने फोन पर अपनी कहानी सुनाई। मैं सुनता रहा। जब रहा नहीं गया तो एक वाक्य कहा ‘‘ तुम क्यों चाहती हो कि बच्चे सुनें? क्यों सोचती हो कि बच्चे कक्षा में चुप्प बैठे रहें। क्यों चाहती हो कि बच्चे तुम्हारी बात मानें?’’ इसपर बहन रूंआंसी हो गई। कहने लगी आप नहीं समझते। प्रिंसिपल डांटती है। एकेडमिक हेट गुस्सा होती है। यदि क्लास में शोर हो रहा होता है।
मुझे मेरी बहन की बातों में सच्चाई तो लगी लेकिन कमी भी मिली। जब वो मान कर चल रही है कि बच्चे शरारती हैं। बच्चे नहीं सुनते यानी कहीं न कहीं वो एक नकारात्मक सोच की गिरफ्त में है। जबकि उसे बच्चों को कैसे मैनेज किया जाए और क्लास में कैसे सकारात्मक माहौल बनाएं इसकी समझ और योजना प्रशिक्षण के दौरान दी जानी चाहिए थी। मुझे बहनों से ज़्यादा प्रशिक्षण संस्थानों की कमी नज़र आती है। हमारे शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान महज शिक्षक बनने की पात्रता तो दे देते हैं। उन्हें दक्षता और शिक्षकीय कौशल प्रदान करने में पिछड़ जाते हैं। यही कारण है कि हज़ारों लाखों टीचर डिग्री तो हासिल कर लेते हैं लेकिन जब क्लास में प्रवेश करते हैं तब उन्हें ख़ासा मुश्किलें आती हैं।
मेरी हज़ारों बहनें याद रखो- क्लास की तुम मालकीन हो। तुम जैसे अपने कीचन को सजा संवार कर रखती हो वैसे ही क्लास को भी सजाना होता है। उन्हें हमेशा डस्टिंग भी करते रहना होता है। तब जा कर आपकी क्लास चमकती है। और आपको अपने कीचन में जाने में तब डर नहीं लगता तब सब साफ सुधरा और आपके मनोनकूल हो। आपको अपनी कक्षा भी अनुकूलित करनी होती है। जो पढ़ाओ पूरी शिद्दत से पढ़ावा। यह चिंता किए बगैर कि कोई ऑब्जर्ब कर रहा है। आप ख्ुद ऑब्जर्बर बनोगी तब आपको किसी से भी डर नहीं लगेगा।
अगर फिर भी डरती हो तो लिखो न यहां पढ़ाने में क्यां डरती हो? क्यों ऑब्जर्ब होने भय खाती हो? मिल कर संवाद करते हैं।

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