Tuesday, February 20, 2018

कहानी बुनों तो सही




 कौशलेंद्र प्रपन्न
चित्र में आप दो टीम को पीछे देख रहे हैं। यही वो टीम है जिन्हें निर्णायक मंडल ने आम सहमति से विजेता चुना है। विजेता वे भी कहानी बुनने में। कहानी के बुनकरों को बधाई। संभव है आज के समय में हम कहानी बुनना तो दूर कहानी सुनना और सुनाना जैसे गैर उत्पादक कामों को तवज्जो न दें। लेकिन आने वाली पीढ़ी जब कहानी की मांग करेगी तो क्या देगें हम? सोचिए और पढ़ें आज की बात-
वैसे हमसब कहानी बुनने में तेज हैं। तेजी से कहानियां बुन लिया करते हैं। परिस्थिति जो भी हो। यही कारण है कि हम अपनी बात और कई बार अपनी पीड़ा भी कहानी के ज़रिए कह दिया करते हैं। लेकिन कल्पना कीजिए आपको चार मिनट का मौका मिले और कहा जाए चलिए साहब इस मसले पर कहानी बुनें। तब चुनौती बड़ी हो जाती है।
श्री राम कॉलेज ऑ कॉमर्स के हिन्दी विभाग में स्पंदन कार्यक्रम में सुनने और गुनने को मिला। विभिन्न कॉलेजों से आए छात्रों ने कहानी बुनने में अपनी दक्षता दिखाई। उन तमाम छात्रों ने अपनी काबिलीयत का परिचय दिया जिन्होंने कहानियां बुनीं। कहानी बुनने की प्रक्रिया और उस कालखंड़ का चस्मदीद गवाह बनने का अवसर मिला। कैसे बच्चे कहानियां बुन रहे थे। बल्कि कहानी कह रहे थे।
कहानी बुनने और उसके बाद कहानी कहने में अंतराल इसलिए दिया गया ताकि आपसी तालमेल बैठाया जा सके। गौरतलब है कि कहानी बुनने वाला अकेला कत्तई नहीं था। बल्कि दो लोगों को एक साथ कहानी बुननी थी। है न दिलचस्प !!!
कहा हम साथ साथ चल नहीं पाते। चलते हैं तो लड़खड़ाते हैं। उसपर तुर्रा यह कि दो लोगों को एक साथ कहानी की घटना, संवाद, कथानक और प्रवाह सब खुद ही आपस में तय करना था। इसमें आपसी मंथन, एकीकृत सोच और संवाद को जीवंत बनाने के लिए वाक्यों, संवेदनाओं को होना नितांत ज़रूरी है।
कहानी बुनने की पूरी प्रक्रिया का गवाह रहा तो यह भी जिम्मेदारी बनती है कि मैं आपको बताउं कि कुछ छात्रों ने अच्छी कहानियां बुनीं। कुछ बच्चों के कंटेंट अच्छे थे। तो कुछ ज़्यादा ही जल्छबाज़ी में थे। जल्दबाज़ी बुनने में नहीं थी बल्कि कहानी कहने में थी। यहां अंतर समझते चलें कि कहानी बुनना और कहानी कहना दो अलग अलग कौशलों की मांग करती हैं।
न जाने हमारे छात्र क्यों रफ्तार में थे ज बवे कहानी सुना रहे थे। बहुत तेजी से आगे बढ़ जाना चाहते थे। शायद यहीं पर कहानी सुनने और कहने का आनंद जाता रहता है। हालांकि वक़्त की पाबंदी थी। तय समय में ही कहानी कह देनी थी। सवाल है क्या कहानियां कही जाती हैं? या कहानियां सुनाई जाती हैं। यदि यह अंतर छात्रों में बता दिया जाता तो शायद पवे कहानी बुनने और सुनाने के कौशल से महज दो टीम ही नहीं बलिक और टीम भी पुरस्कृत हो पाती।
बहरहाल जो हो कहानी बुनी गई। कहानी सुनाई गई। सुनने वाले भी अघाए। कहानी सुनकर जिन्हें निर्णय देना था वे भी आनंदित हुए। साधुवाद डॉ रवि शर्मा का जिन्होंने हमेशा ही हिन्दी साहित्य सभा, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में नवाचार करते रहते हैं।

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