Wednesday, February 14, 2018

किताबें रिश्ते बुनती हैं मानें या न मानें



कौशलेंद्र प्रपन्न
आज की ही बात है। मेट्रो में सुबह बैठा किताब पढ़ रहा था। किताब थी ‘‘इमेजिनेशनः नो चाइल्ड लेफ्ट इंभिजिबल’’ एक सज्जन अपने तकरीबन चौदह साला बेटे के साथ मेरी सीट के बगल में बैठे। अपने बेटे से लगातार बात कर रहे थे और मेरी किताब पर भी उनकी नज़र थी।
हालांकि मेट्रो में लगातार हमें ताकीद किया जाता है कि अपरिचितों से बात न करें। आदि लेकिन ऐसे कई मर्तबा हुआ है कि मैंने भी कई बार साथ बैठे वाले ने भी बातचीत का सिलसिला शुरू किया है। कई बार इतनी अच्छी बात और व्यक्ति मिला करते हैं लगता है इनसे तो रोज़ ही मुलाकात होती रही है।
ऐसे ही रफ्ता रफ्ता तीस हज़ारी स्टेशन पर उन्होंने कहा कितनी अच्छी बात लिखी है इस किताब में। कैसे बच्चों से बात करें। नकारात्मक बात न करें। हमेशा प्रोत्साहन वाले अंदाज़ में बच्चों से बात करें। बात करें। भाषा कैसी हो। सचमुच किताबें एक अच्छी दोस्त होती हैं। वो जनाब लगातार बोले जा रहे थे। मुझे भी बुरा नहीं लगा। क्योंकि एक किताब का प्रेमी जो मिला था।
दूसरा वाकया कोलकाता से दिल्ली लौटने के दौरान साथ बैठे फ्लाइट सहयात्री काफी देर के बाद बोल पड़े। कौन सी किताब पढ़ रहे हैं? क्या लिखा है? पाकिस्तान तो हमें बरबाद करने पर तुला है और आप एक पाकिस्तानी लेखिका की किताब पढ़ रहे हैं आदि।
जब उस किताब का मजमून बताया तब थोड़े झेप गए। क्यांकि वह किताब ‘‘1947 दिल्ली से पाकिस्तान भाया पिंड’’ सबूहा ख़ान की आटोबायोग्राफी थी। जिसमें उन्होंने बड़ी ही संजीदगी से तकसीम के मंज़र को भोगा और जीया हुआ यथार्थ लिखा था।
लेकिन अच्छा लगा उनके हाथ में भी एक किताब थी जो हडसन लेन, कैंप, आदि को आधार बनाकर प्रेम आधारित अंग्रेजी की किताब थी। जब मैंने उसे उलट पुलट कर देखा तो बड़ी घोर निराशा हुई। किस प्रकार नवोदित लेखक ने प्रेम और दोस्ती को इन जगहों पर फैला कर बीच बीच में सेक्स का छौंक मार कर लिखा था।
जो भी हो। मैंने तो यही पाया है कि जब भी आप अच्छी किताब पढ़ते हैं तो न केवल आपको बल्कि कई बार सामने वाले की नज़र भी बदल देती है। दोस्ती तो आपको घलुआ में मिल जाया करती है।
अच्छी किताबें और अच्छे दोस्त इस भीड़ में बहुत मुश्किल से मिला करते हैं। उन्हें बचा कर रखना भी ज़रा कठिन होता है। लेकिन चाह लें तो दोनों ही चीजें बचाई जा सकती हैं।

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