Thursday, February 15, 2018

कैसे रखें अपनी बातें



कौशलेंद्र प्रपन्न
कहना एक कला है तो इसे विकसित भी कर सकते हैं। आज काफी वक्ता और प्रोफेशनल इस फील्ड में उतर चुके हैं जो ज्ञान और अनुभव साझा किया करते हैं कि जीवन में कैसे आगे बढ़े। कैसे ऑफिस और घर को मैनेज करें आदि। उसी प्रकार से बाज़ार ऐसे वक्ताओं और प्रोफेशनल से भरे हुए हैं। पैसे दीजिए और गुण सीखिए। कहते हैं यदि आपके पास कहने का हुनर है तो ख़राब से ख़राब कंटेंट को सुना सकते हैं। ज्ञोताओं की भीड भी मिल जाएंगी।
दो बातें प्रमुख हैं बोलने से पहले शब्दां का चयन बेहद ज़रूरी है।उसके बाद अपनी बात को किसी कहानी या कथन से शुरू की जाए तब भी श्रोता सुनते हैं। हां यदि कहानी लंबी हो गई तो बारीयत की स्थिति पैदा हो सकती है। इससे बचने के लिए श्रोताओं को हमेशा नज़रों में रखना होता है।
ज़रूरत इस बात की है कि क्या आपको श्रोताओं के अनुसार बोलना और बतियाना आता है। क्या आप मनोदशा और मनोस्थिति के साथ परिवेश को ध्यान में रखक रबात कर सकते हैं। आज की तारीख़ी हक़ीकत है कि हर कोई बोलना और सुनाना चाहता है। लेकिन कैसे सुनाएं व कैसे बोलें कि हर केई सुनने में दिलचस्पी ले इसके लिए सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। साथ ही कहने के कौशल को मांजना होता है। बिना अभ्यास और कौशल के अच्छे कंटेंट बरबाद हो जाते हैं।


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