Monday, November 9, 2015

शिक्षक की सहिष्णुता


तीन तीन और छह माह तक वेतन नहीं मिलते। मिलता है तो केवल आश्वासन और प्रशासन के डंडे। जब भी शिक्षक वर्ग अपनी हक की बात व मांग करता है तब तब उसपर लाठियां और पानी बरसाए गए हैं। समाज में हिकारत से देखी जाती है सेा अलग। कहने वाले कहते हैं मास्टर हैं साल भर बैठ कर पगार लेते हैं। पढ़ते लिखते नहीं हैं। ज़रा इन पंक्तियों के वक्ताओं से कोई पूछे कि जिसे छह महा से वेतन नहीं मिला है वह अपना घर परिवार कैसे पाल रहा होगा। कैसे बच्चों की पढ़ाई के फीस, दूध वाला, राशन पानी वाले के यहां से उधार जिंदगी बसर कर रहा होगा। किसी ने यह नहीं पूछा कि शिक्षक की रोजमर्रे की जरूरतों को कौन पूरा करता है। ऐसे बहुत कम शिक्षक हैं जिनकी पुश्तैनी जमीन हैं। उनके पास पैसों का बहुत अगाध स्रोत भी नहीं है। उनका घर वेतन पर ही चला करता है। जैसे वेतन में देरी होती है वैसे ही बहुत सारे काम अगले माह पर टाल दिए जाते हैं।
ऐसे में शिक्षकों की कौन सुनता है? कौन है जो उनके लिए आवाज बनता है? कहते हैं अपनी लड़ाई खुद को लड़नी पड़ी है। ऐसे में यह कितना दिलचस्प है कि तमाम संगठनों के बावजूद शिक्षकों की सुनने वाले कम हैं।

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