Tuesday, November 17, 2015

कोई किताब दें, ताकि परिवर्तन किया जाए सके




पिछले दिनों इडिपेंडेंट न्यूज एनालसिस की ओर से आयोजित ‘रन नो वेयरः बच्चो के तन-मन पर बढ़ता बोझ’ पर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री श्री मनीष सिसौदिया ने कबूल किया कि उन्हें शिक्षा की समझ बहुत कम है। उनके पास भी अन्य लोगों की तरह ही डिग्रियां हैं लेकिन शिक्षा की गहरी समझ नहीं है। इसलिए यहां शिक्षाविद्ों के बीच आएं हैं ताकि शिक्षा की चुनौतियों और समझ बना सकें। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसी कोई किताब दीजिए जिससे परिवर्तन हो सके। कोई ऐसी किताब बताएं जिससे नैतिकता का पाठ पढ़ाया जा सके। मंत्री महोदय के वक्तत्व को सुनकर एकबारगी लगा को बहुत जल्दी में हैं। इन्हें कोई जादू की किताब पकड़ा दी जाए और महोदय रातों रात बदलाव कर डालेंगे।
इस सेमिनार में प्रो कृष्ण कुमार, श्री प्रेमपाल शर्मा, प्रो अपूर्वानंद श्री और कौशलेंद्र प्रपन्न उपस्थित थे। प्रो अपूर्वानंद ने एनसीएफ की स्थापनाओं और विभिन्न आयोगों के हवाले स कहा कि बच्चों पर दरअसल समझने और पढ़ने का बोझ बहुत गहरा है। वहीं श्री प्रेमपाल शर्मा ने अपनी चिंता इस रूप में रखी कि बच्चों पर सबसे ज्यादा बोझ अंग्रेजी की है। भाषा के तौर पर बच्चो की समझ के रास्ते में रोड़ा अटकानें वाला तत्व अंग्रेजी को हम आज भी भारतीय भाषाओं के बरक्स अधिक तवज्जो देते हैं। श्री कौशलेंद्र प्रपन्न ने शिक्षक की भूमिका और शिक्षकीय कौशलों के विकास की ओर सदन का ध्यान खींचा। प्रपन्न ने कहा कि नागर समाज शिक्षा मंे गुणवत्ता में आई गिरावट व पढ़ने में पिछड़ते बच्चों के लिए जिम्मेदार शिक्षा के सबसे नरम और कमजोर कड़ी शिक्षक को पकड़ा जाता है। जबकि शिक्षकों की इन सर्विस और पूर्व  सर्विस प्रशिक्षण सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।
दो घंटे चले इस विमर्श में शिक्षा और बच्चों की शैक्षिक परेशानियों और बस्ते के बोझ को कैसे कम किया जाए आदि गंभीर मसलों पर बातचीत की गई। कार्यक्रम का संचालन एनडीटीवी के वरीष्ठ न्यूज संपादक श्री सुशील बहुगुणा ने किया।

No comments:

शिक्षकीय दुनिया की कहानी के पात्र

कौशलेंद्र प्रपन्न ‘‘ इक्कीस साल के बाद पहली बार किसी कार्यशाला में बैठा हूं। बहुत अच्छा लग रहा है। वरना तो जी ...