Tuesday, November 3, 2015

कहीं तो रहूंगा


रहूंगा
किसी न किसी रूप में
गंध में
स्वाद में
या फिर यादों में।
कहीं नहीं जाने वाला
किसी ने किसी रूप में
रहूंगा आस पास खुले आकाश में
पिलपिलाती जमीन में
बजबजाती यादों में
या फिर इसी यूनिवर्स में किसी ग्रह पर
विचरता रहूंगा।
रूप बदल जाएंगे
आवाज बदल जाएगी
कद काठी बदली जाएगी
पर नहीं बदलेगी
मेरी स्मृतियों में आना जाना।
तुमने क्या सोचा मैं चला जाउंगा
दूर कहीं दूर नीले आसमान में
तुम पुकारोगे और मैं नहीं सुनूंगा
ऐसा नहीं होगा,
मैं बस बेजबान
सब कुछ सुनकर भी उत्तर नहीं दे पाउंगा
क्योंकि मेरे पास तुम्हारी जबान नहीं होगा।
अभी अभी पीठ पर टंगा
कल खुजली की तरह परेशां करता है
लाख चाह कर भी नहीं उतार पाता,
कल की घटनाओं की चीख,
उस बच्ची की हिचकी,
बहुत शोर है तुम्हारे शहर में
कभी शोर से बाहर आना तो फिर बात करेंगे।

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