Tuesday, November 10, 2015

आॅन लाइन भीड़ और दुकानों पर पसरा सन्नाटा

कौशलेंद्र प्रपन्न
श्रीराम तिलकुट भंडार, मामा जी की दुकान,ग्लासिना,गद्दे ही गद्दे,राहुल शूज आदि नाम दुकानों के हुआ करते थे। हमारा बाजार और दुकानों के नामों में बदलाव तो आए ही साथ ही दुकानों के सामानों में भी परिवर्तन आया। समय के साथ पुरानी दुकानों ने अपने कलेवर बदल डाले। यह बाजार और समय का ही तकाजा था कि यदि वे नहीं बदलते तो समय उन्हें पीछे छोड़ देता। डिजिटल इंडिया में दुकानांे के मायने भी बदल गए हैं। कभी समय था जब हमारी खरीद्दारी दुकानों पर जा कर हुआ करती थी। जहां मोल भाव करने का अलग सुख मिला करता था। लेकिन समय और तकनीक के सफ़र में हमारी शाॅपिंग शैली बदल रही है। हम घर बैठे जरूरत की चीजें खरीदा करते हैं। यदि पिछले पांच साल की बाजारीय रूझान पर नजर डालें तो एक दिलचस्प कहानी सामने आएगी। हाट बाजार बहुत तेजी से बदले हैं। यह बाजार की ही ताकत है कि जिसकी जरूरत नहीं है वह सामान भी बेच देने का जादू रखती है। दुकान,दुकान जा कर सामान खरीदने की प्रवृति भी बदली है। नब्बे के दशक में जिस तेजी से माॅल्स खुलने शुरू हुए उसी रफ्तार से छोटे और मंझोले किस्म की दुकानों मंे ग्राहकों के टोटे पड़ने शुरू हो चुके। ग्राहक धीरे धीरे आलसी भी होते चले गए। अब ग्राहकों के पास शायद समय की कमी होने लगी और वह एक ही छत के नीचे अपनी जरूरत की तमाम चीजें एक ही जगह पर लेने लगे।
आॅन लाइन शाॅपिंग का चलन बहुत पुराना नहीं है। यह मुश्किलन पांच सालों में खासा प्रसिद्ध हुआ है। घर बैठे जो लेना चाहें आपके द्वार पर सामान बेच जाता है। डोर टू डोर शाॅपिंग यही तो है कि ग्राहक को कहीं नहीं जाना घर पर अपने पसंदीदा सामान पा लेने की चाहत ने आॅन लाइन शाॅपिंग को दिनो दिन हवा पानी दे रहा है। आॅन लाइन शाॅपिंग का एक फायदा यह जरूर हुआ कि लोगों की समय की बचत हुई। साथ ही बाजार पर मुनाफाखोरों की पकड़ कमजोर हुई। बाजार में ताकत का विकें्रदीकरण हुआ जिसका फायदा ग्राहकों को मिलने लगा। दूसरे शब्दों में बाजार पर एक छत्रराज मंे विघटन देखा गया। इसका दूसरा पहलू भी है जो अक्सर आंखों से ओझल रहा वे है सामान के लागत मूल्य पर सामान ग्राहकों को मिलने लगे। जो खर्च रिटेलर को अपनी दुकान के तमाम खर्चें की वजह से सामान के मूल्य पर लगाना पड़ता था वो कम हुआ। जगह,बिजली,मैनपावर आदि के खर्चे में भी गिरावट हुई जिसका असर सामान के मूल्यों पर देखा जाने लगा।
बड़े बड़े वायर हाउस, मैनूफैक्चरिंग कंपनियां एक जगह पर सामान बनाती हैं और आॅन लाइन डिमांड आने पर वहीं से शिपिंग कर दिया करती हैं। इससे उन्हें भी अतिरिक्त खर्च से निजात मिला। एसोचैप की हालिया रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न माॅलों के साथ ही मुंबई, अहमदाबार, कोलकाता,हैदराबाद, चंड़ीगढ, देहरादून आदि शहरों में ग्राहकों की कमी दर्ज की गई है। तकरबीन 55.58 फीसदी की गिरावट एसोचैम की रिपोर्ट मानती है। एसोचैम ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि पिछले दो सालों मंे दिल्ली और एनसीआर में 120 से 150 माॅल्स खुले जिनमें से 66-67 फीसदी दुकानें बंद हो गईं। ग्राहकों की खासा कमी की मार इन माॅल्स मंे खुली दुकानों के मालिकों को सहना पड़ रहा है। एसोचैप की रिपोर्ट मानती है कि वर्तमान में माॅल्स कम ग्राहकों की कमी से जूझ रहे हैं। विभिन्न माॅल्स में 40 फीसदी ही दुकानें चल रही हैं, बाकि माॅल्स खाली पड़े हैं। इसके पीछे वजह यह पाया गया कि या तो माॅल्स के आस पास पार्किंग की समस्या है या फिर लोकेशन अच्छी नहीं है। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार इस साल त्योहारों के सीजन में आॅन लाइन शाॅपिंग सुविधा मुहैया कराने वाले विभिन्न साइटों मसलन स्नैपडिल, मंत्रा,फ्लीपकार्ट,अमेजोन आदि ने तकरीबन 55,000 करोड़ रुपए का व्यापार किया है। इसका असर छोटे दुकानदारों पर पड़ा है।
यह देखना भी दिलचस्प होगा कि इस आॅन लाइन शाॅपिंग करने का कौन का ग्राहक है और वह किस उम्र के हैं। एसोचैम ने इसीसाल अक्टूबर एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके अनुसार आॅन लाइन शाॅपिंग करने वाले कस्टमर अमूमन 15 से 35 साल के आयु वर्ग के हैं। यह वह वर्ग है जो टेक्नोसैवी है। यह डेस्क टाॅप या लैपटाॅप पर शाॅपिंग करता है। उसमंे भी जूते, कपड़े, आभूषण, मोबाइल आदि की खरीदारी करते हैं। स्टूडेंट्स तो हैं ही साथी घरेलू महिलाएं भी जम कम घर चैका बर्तन, पर्दें,सोफा आदि आॅन लाइन खरीद रही हैं। एसोचैम के सेक्रेटी जनरल श्री डी एस रावत का मानना है कि ये ग्राहक ;15 से 35 आयु वर्गद्ध ज्यादा तर स्मार्ट फोन, टेबलेट्स, लैपटाप आदि पर शाॅपिंग किया करते हैं। यह वर्ग घर और आॅफिस में सक्रिय शाॅपिंग किया करते हैं।
आॅन लाइन शाॅपिंग का कोई समय, तिथि निर्धारित नहीं होती लेकिन ग्राहकों को लुभाने के लिए सबसे सटीक समय त्योहारों का होता है। दशहरा से लेकर बड़े दिन की छुट्टियों तक तमाम आॅन लाइन वेब शाॅपिंग साइट्स अपने सामानों पर भी छूट दे रहे हैं। चैबीसों घंटे खुली इन दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ कम नहीं होती। एक सामान के साथ फलां सामान बिल्कुल फ्री। इसी तर्ज पर बिग बाजार, मोर, एप्पल आदि ने भी गणतंत्र दिवस, स्पतंत्रता दिवस, दीवाली जैसे अवसरों पर तीन और चार दिन के महा सेल पखवाड़ा मनाया करते हैं। इन दिनों में भीड़ को देखकर लगता है सारी की सारी जनता इन्हीं दिनों का इतजार कर रही थी। सेहद और पाकेट पर डेरा जमा चुकी बाजार हमेशा ही ग्राहकांे को कुछ न कुछ बेचने पर आमादा है। दिलचस्प बात यह भी है कि हम बिन मौसम कपड़े,खाने पीेने के सामान भी खरीद लेते हैं जिनका इस्तमाल तकरीबन साल भर बाद होना लेकिन हम अपने जेब से पैसे निकाल कर बाजार में फेक देते हैं।
आज बाजार का बदलता चरित्र और प्रकृति कहीं बड़े बदलाव की ओर इशारा करता है। यह बदलाव हमारी स्वभाविक सामानों के प्रति बढ़ती भूख की ओर भी ध्यान खींचता है। पहले हम सिर्फ जरूरतों के सामान खरीदा करते थे लेकिन जब से बाजार आॅन पाम आ चुकी हैं तब से यह हिचक भी खत्म होती गई कि पैसे हैं या नहीं, बाजार तो दूर है। जाने में समय लगेगा। इन तमाम हिचकियों को खत्म किया है आॅन लाइन शाॅपिंग। आने वाला समय खुदरा व्यापारियों के लिए अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जोखिम भरा है।


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