Saturday, November 28, 2015

षिक्षा नीति निर्माण और सरकारी मनसा



कौषलेंद्र प्रपन्न
शिक्षा नीति और शैक्षिक बदलाव के पीछे यदि सरकार की मनसा दुरूस्त हो तो चिंता की बात नहीं। क्योंकि जब जब सरकारें बदली हैं वे अपने वैचारिक हित और प्रतिबद्धता के  अनुसार शिक्षा को बदलने की काशिशें करते रहे हैं। उसी कड़ी में दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग करने के संकेत दे चुकी है। हाल ही में विभिन्न नेशनल अखबारों में जारी शिक्षा विभाग, दिल्ली सरकार के विज्ञापनों पर सरकार की शैक्षिक दशा-दिशा और नीति की झांकी मिलती है। इस विज्ञापन की भाषा और कथ्य पर नजर डालें तो बहुत सी भ्रांतियां दूर हो जाएंगी। इस विज्ञापन की मुख्य स्थापनों और दृष्टि पर नजर डालना लाजमी होगा शेष विमर्श आगे। ‘प्राइवेट स्कूलों के एकाउंट की वैरिफिकेशन’, ‘आठवीें क्लास पर बच्चोंको पास करने की प्रणाली पर पुनर्विचार, नर्सरी एडमिशन में धांधलियां, टीचर्स की सैलरी आदि। शिक्षा विभाग और शिक्षा मंत्री इस विज्ञापन की भाषा और कथ्य से खुद को अगल नहीं कर सकते। अंत में शिक्षामंत्री लिखकर घोषित करते हैं कि ‘हमारी नीयत साफ है’ ऐसी घोषणा करने के पीछे विभाग की मनोदशा क्या है?, आपकी एक एक चिट्ठी को मैं पढूंगा। और इस विज्ञापन के नीचे ईमेल आई डी दी गई है। यदि कोई भी पाठक व नागर समाज चिट्ठी लिखना चाहे तो उसके लिए कोई अता पता नहीं दी गई है। क्या चिट्ठियां शिक्षा विभाग को दी जाएंगी यदि हां तो उसका पता क्या है? इस विज्ञापन की भाषा पर अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी के शब्दों को बेहिचक इस्तमाल किया है। हालांकि मिली जुली भाषा से परहेज नहीं है किन्तु एक भाषायी गरिमा को बरकरार रखना भी अपेक्षित है।
शिक्षा विभाग के इस विज्ञापन और सरकार की शैक्षिक चिंता को देखते हुए एक निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि शिक्षा विभाग की नजर में शिक्षा में गुणवता को सुनिश्चित करने की बजाए प्रशासनिक और व्यवस्थागत पहलकदमियों को लेकर ज्यादा चिंतित है। इसी झलक हमंे इस विज्ञापन में देख सकते हैं। शिक्षा विभाग का मानना है कि अब कानून बदलकर इन सब गतिविधियों को रोका जाएगा। सरकार मानती है कि नर्सरी एडमिशन में धांधलियां होती है उससे निपटने के लिए कानून में बदलाव किया जाएगा। गौरतलब है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम अधिनियम 2009 मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों को प्रदान करता है। यानी पहली से कक्षा 8 वीं तक शिक्षा सभी बच्चों को हासिल करने का कानूनन अधिकार है। वह प्राथमिक शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य दी जाएगी। ऐसा आरटीई एक्ट 2009 की स्थापना है। लेकिन इन सब के विपरीत देश भर में कम से कम सात करोड़ अस्सी लाख बच्चे अभी भी स्कूल और बुनियादी शिक्षा से महरूम हैं। जबकि हमारा देश और विश्व के तमाम देशों ने 1990 में स्नेगल में सभी के लिए शिक्षा सम्मेलन में स्वीकारा था कि 2000 तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया करा दी जाएगी। मगर हकीकत यह है कि सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार अस्सी लाख बच्चे शिक्षा पाने से वंचित हैं। बच्चों को बुनियादी शिक्षा मिल सके इस ओर दिल्ली, शिक्षा विभाग का कोई इरादा नहीं है। क्योंकि शिक्षा विभाग से जारी इस विज्ञापन से एक और संदेश मिलता है कि सरकार की नजर में शिक्षा की गुणवत्ता और स्कूली शिक्षा की बेहतरी को लेकर गंभीर नहीं है। इस विज्ञापन के अनुसार प्राइवेट स्कूलों के एकाउंट की वैरिफिकेशन करने का प्रावधान किया जाएगा एवं टीचर्स की सैलरी को लेकर तो गंभीर है किन्तु कुल मिला कर यह प्रकारांतर से महज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से दिखाने की कोशिश करती है किन्तु विज्ञापन ऐसी कोई उम्मीद की रोशनी नहीं देती। टीचर्स की सैलरी के अंतर्गत शिक्षा विभाग स्वीकारता है कि अभी तक कानून में यह प्रावधान था कि सभी प्राइवेट स्कूलों को सरकारी स्कूलों के टीचर्स के बराबर वेतन दिया जाएगा। इस प्रावधान से कुछ विसंगतियां पैदा हो गई थीं। टीचर्स की सैलरी इस उपशीर्षक में सरकार की दृष्टि का अनुमान लगता है कि सरकार सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षकों को मिलने वाले असमान वेतन की विसंगति को दूर करना चाहती है। एक ओर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को छठा वेतन आयोग के अनुसार वेतन मिल रहा है वहीं निजी स्कूलों में आलम यह है कि 5 हजार से 8 हजार देकर हस्ताक्षर पूरे वेतन पर कराया जाता है। इस असमान वेतनीय प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए शिक्षामंत्री व विभाग गंभीर है। विज्ञापन में लिखा गया व घोषित किया गया है कि अभी तक कानून में लिखा गया था कि हर प्राइवेट स्कूल अपने टीचर्स को सरकारी स्कूलों के बराबर वेतन देगा। इस प्रावधान को हटाकर अब इस कानून में यह प्रावधान लाया जा रहा है कि हर प्राइवेट स्कूल अपने टीचर्स को उतना वेतन देगा जितना सरकार द्वारा अधिसूचना के तहत निर्देशित किया जाएगा। ज़रा भाषायी विडंबना देखिए विज्ञापन के अंतिम चरण में क्रमांकों में कुछ बातें कही गई हैं जिसमें तीसरे नंबर में लिखा है जो स्कूल अभी तक वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करते रहे हैं उन स्कूलों के वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए कहा जाएगा। इस पंक्ति में समान संदेश को दुहराया गया है। क्या सावधानी नहीं बरतनी चाहिए थी?
स्कूलों में शिक्षकों, प्रधानाचार्यों, विषयवार शिक्षकों की घोर कमी है। इतना ही नहीं बल्कि दिल्ली सरकार आरटीई में निर्दृष्ट कक्षा आठवीं तक किसी भी बच्चे को फेल नहीं किया जाएगा इस प्रावधान को खत्म करने पर भी विचार कर रही है। सरकार का मानना है कि इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति गंभीरता और भय खत्म हो रहा है। नवीं कक्षा में बच्चे ज्यादा फेल हो रहे हैं आदि इन तर्कों को ढाल बना कर नो रिटेंशन पाॅलिशी को बदलने का मन बना चुकी सरकार व शिक्षा विभाग को इसके दूरगामी और शैक्षिक विमर्शकारों से भी राय लेनी चाहिए। जब आरटीई के फेल न करने के प्रावधान में परिवर्तन किया जा सकता है तो उसी कानून में वर्णित अन्य प्रावधानों की ओर सरकार क्यों नहीं योजना बनाती। क्या इन नीतिगत परिवर्तनों और मनसा के पीछे की रणनीति को भी समझने की आवश्यकता है।
दिल्ली की शिक्षा नीति में ऐतिहासिक परिवर्तन के तीस मकसदों पर नजर डालें तब और भी परतें खुलेंगी-
दिल्ली के बच्चों को सस्ती और अच्छी शिक्षा मिल सके, सभी अध्यापकों को अच्छा वेतन मिल सके और उनका शोषण बन्द हो, कानूनी व्यवस्था की विसंगतियों को हटाया जाए ताकि स्कूलों के मैनेजमेंट ईमानदारी से काम कर सकें। इन उद्देश्यांे पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि सरकार की मनसा क्या है। साथ ही प्राथमिक शिक्षा को बेहतर तरीके से कक्षाओं में संप्रेषित करने वाले शिक्षकों के वेतनमान की ओर तो सरकार की चिंता दिखाई देती है किन्तु शिक्षकों की खाली पदों को भरने और प्रशिक्षणीय गुणवता को सुधारने के प्रति सरकार गंभीर नहीं है।  एक ओर विज्ञापन उस तरफ हमारा ध्यान खींचता है कि निजी स्कूलों में खटने वाले शिक्षकों को कम से कम एक निर्धारित वेतन मिले। उनका शोषण न हो लेकिन निजी स्कूलों के मैनेजमेंट पर नकेल कसने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे इस ओर कोई संकेत नहीं किया गया है। राज्य की शिक्षा नीति न केवल सरकार की मनसा व चरित्र का खुलासा किया करती हैं बल्कि सरकार की शैक्षिक प्राथमिकता की ओर इशारा करता है। वर्तमान सरकार अभी बुनियादी जरूरतों, भवन, शौचालय आदि को दुरूस्त करने पर ध्यान दे रही है उसका अगला कदम इस विज्ञापन में झलकता है। लेकिन शिक्षा में गुणवता को समावेश कैसे सुनिश्चित किया जाए इस ओर कोई उम्मीद की रेाशनी नजर नहीं आती।


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