Tuesday, November 17, 2015

हिन्दी मिलन



यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि टेक महिन्द्रा फाउंडेशन के शिक्षांतर के तहत चलने वाली अंतःसेवाकालीन शिक्षक शिक्षा संस्थान ने इस वर्ष अप्रैल से नवंबर 2015 के बीच 39 हिन्दी कार्यशालाओं का आयोजन किया। इन कार्यशालाओं में अब 499 शिक्षक/शिक्षिकाओं ने हिस्सा लिया। दूसरे शब्दों मंे कहें तो अब हमने 499 हिन्दी भाषा शिक्षण दक्षता कौशल से शिक्षकों को लैस किया। यह संख्या देखने में एकबारगी कम लग सकती है लेकिन जब हम इसकी गुणवत्ता पर नजर डालते हैं तो एक आत्मसुख यह मिलता है कि इन कार्यशालाओं में आने वाले प्रतिभागियों ने हिन्दी को कैसे रोचक तरीके से पढ़ाएं इसकी समझ पुख्ता कर के आज अपनी कक्षाओं में बेहतर शिक्षण कर रहे हैं। बतौर प्रशिक्षित शिक्षकांे की जबानी सुनें तो लगता है कि हमारी हिन्दी की शिक्षकीय प्रशिक्षण कार्यशालाओं का लाभ बच्चों को मिल रहा है। कई प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि प्रशिक्षण पूर्व और उत्तर प्रशिक्षण हिन्दी पढ़ाने के तौर तरीकों और रवैए में खासा परिवर्तन हुआ है।
हिन्दी शिक्षण कार्यशाला आयोजन के पीछे हमारा उद्देश्य स्पष्ट था कि किस तरह से शिक्षकों को इस बात और विमर्श के लिए तैयार करें कि वे अपनी कक्षाओं मंे हिन्दी पढ़ाने के दौरान रोचकता का संचार कर सकें। वे स्वयं हिन्दी को लेकर पैठी भ्रांतियों को दूर कर सकें। हमने शिक्षण-प्रशिक्षण के दौरान पाया कि शिक्षकों को स्वयं भी कई जगहों यानी वर्तनी,कविता,कहानी शिक्षण मंे परेशानी होती थी। उस पर भी रिमझिम किताब को समझने और उसके पाठों को पढ़ाने के दरमियान भी विभिन्न स्तरों पर समस्याएं आती थीं। इन्हें ध्यान मंे रखते हुए हमने रिसोर्स पर्सन का चुनाव किया। तीन की कार्यशाला में एक दिन भाषा शिक्षण, भाषा की प्रकृति, भाषायी परिवेश एवं भाषा शिक्षण के औजारों पर केंद्रीत किया। दूसरे दिन कविता शिक्षण के कौशलों और इसमें गतिविधियों की सृजना पर जोर दिया। तीसरे दिन कहानी शिक्षण के तत्वों और कौशलों पर विस्तार से विमर्श किया। कार्यशाला के तीसरे दिन जिस प्रकार की प्रतिक्रियाएं निकल कर आईं उन्हें देख-सुन कर प्रतीत हुआ कि वास्तव में इन कार्यशालाओं का लाभ शिक्षकों को मिला है।
हिन्दी मिलन क्यों?
क्या हम इन 499 शिक्षकों को एक बाद प्रशिक्षण देने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें? क्या उन्हें पढ़ाने के दौरान आने वाली परेशानियों का निराकरण न करें? उन्हें गतिविधियों के निर्माण में आने वाली अड़चनों को दूर न करें? इन्हें सब सवालों, उलझनों को ध्यान में रखते हुए हमने योजना बनाई कि क्यों न एक दिन हम उन तमाम शिक्षकों के साथ गुजारें जिन्होंने हिन्दी में प्रशिक्षण हासिल की है। क्यों न उन्हें एक खुला मंच प्रदान किया जाए जहां वे अपनी सृजनात्मकता, कल्पनाशीलता,गतिविधियों आदि का प्रदर्शन कर पाएं। क्योंकि प्रतिभागियों की ओर से भी यह मांग आ रही थी कि हमें दुबारा एक बार बुलाया जाए। एक बाद पुनः ऐसा माहौल प्रदान किया जाए ताकि सीखी हुए कौशलों को मांज-खंघाल पाएं।


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