Friday, September 28, 2018

केयर टेकर रखिए, सब ख्ुश रहेंगे


कौशलेंद्र प्रपन्न
संयुक्त परिवार होने ही चाहिए उसके एक तर्क में यह भी शामिल कर लें कि जब घर में कोई पेट से होता था तो पूरा घर उसकी मदद के लिए हाज़िर होता था। क्या छोटे बच्चे और क्या बड़े सभी का सहयोग उस औरत को मिला करता था। एकल परिवार के सामने आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि कहने वाले तो कह कह कर बेटे बहु को तंग ओ तंग कर देंगे। इधर बहु घर में प्रवेश की नहीं कि ममिया सास, फुफुसास, ददिया सास, खुद की सास आदि सब कहने लगते हैं बस इसी दिन के लिए ज़िंदा हैं। बस एक पोता दे दे। देरी मत करना। सुनते हैं कि आज के बच्चे बच्चे करने में देर किया करते हैं। एक ओर हमें देखो! छह छह बच्चे पाल पोस कर बड़ा कर दिए और आज की छोरियां ने एक बच्चा भी पालना दुभर है। कहने वाले खूब कहेंगे। कई सारे वास्ते देंगे। और यही से शुरू होती है एक ऐसी कहानी जिसका सिरा पकड़कर आगे बढ़ें तो पूरी कहानी समझते देर नहीं लगेगी। आपने बच्चा करने की प्लानिंग नहीं की तो भी कहने वाले घर-दफ्तर, राह चलते भी मिल जाएंगे। कहेंगे अब प्लांन कर लो देरी हो रही है। कमाल की बात है कि किस बात की देरी साहब! क्या हमारे एक बच्चे के न आने से देश की अर्थ व्यवस्था ठहर तो नहीं गई। कहीं उस एक बच्चे की बजह से कोई युद्ध अनिर्णय का शिकार तो नहीं हो गया? ऐसा कुछ भी नहीं है। आप भी बच्चा कर लें। आप भी घर के चक्कर में उलझे रहें। न दिन सोएं न रात में चैन ले पाएं। यही तो दुनिया उनकी है जिनके पास करने को दूध, पोतड़े धोना, स्कूली की तलाश में दफ्तर से जल्दी आना या छुट्टियां करना आदि। इन्हीं उलझनों में ढिलमिलाते लोगों को यह ज़रा भी गवारा नहीं की फलां इतना छुट्टा कैसे है? कैसे वह साल में दो बार घूमने चला जाता है। इन्हीं आजादियों को खत्म करने की पीड़ा उन्हें सताती हैं जो कहा करते हैं अब तो कर लो। कर भी लो। उनकी बात नहीं मानेंगे तो कहा करेंगे- हम तो तुम्हारी ही भलाई की बात कर रहे हैं। लेकिन सुनता कौन है। बुढ़ापे का सहारा तो कोई होना ही चाहिए। मन में आता है कि पूछ बैठें कि फलां चाचा के तो छह छह बच्चे हैं। तीन बेटे और तीन बेटियां। दूर न जाईए, मामी को ही देख लें उनके भी तो पांच बच्चे हुए। आज मामा मामी अकेले ही घर में खाना बनाते, बाथरूम में कभी भी गिरती मामी हैं। बच्चे फोन पर पूछ लिया करते हैं देख कर रहा करो। अंधेरे में न निकला करो। दाई रख लो। खाना बनाने वाली रख देता हूं। आदि। उन्हीं बुढ़ापे के सहारे की तो आप बात नहीं कर रहे हैं। तर्कों को क्या है जितने मुंह उतने तर्क। क्यों बच्चा करना ही चाहिए।
जब संयुक्त परिवार टूटा तो दादी, चाची, चाचा, दादा भी तो पीछे छूट गए। बहुरिया पेट से है तो ख्ुद ही संभलती है, गिरती पड़ती आफिस जाती है। देर तक काम करने के बाद भी पति का पेट भरती है। खाना बनाती है। सब कुछ किया करती है। लेकिन कितनी मुश्किलें उठाती है इसका अनुमान शायद आप न लगा पाएं। क्योंकि आप तो सीधे कह बैठेंगे कामवाली क्यों नहीं रख लेते। ठीक ठाक कमाते हो। पैसे की क्या कमी है। अब उन्हें क्या मालूम कि पैसे कितने कमाते हैं और कितने खर्चें हैं। ऐसे रायबहादुरों की बातों में आ गए तो समझें आप तनाव में आएंगे ही। लेकिन वे राय देने में पीछे नहीं हटते। पिछले ही दिनों तो उन्होंने बताया था कि फलां के घर बच्चा हुआ तो जापे वाली रखी गई। अब आप मायने पूछेंगे? ऐसी औरत जो दो माह तक जच्चा बच्चा का ख़याल रखा करती है। घर का कोई और काम नहीं करती। बस और बस मां और बच्चे की सेवा करती है। दो माह बाद उसकी भूमिका बदल जाती है। घर बदल जाता है और बदलता है बच्चा और मां।
आज क्या दिल्ली और क्या बंबे हर महानगर में जापा वाली उपलब्ध हैं। न मां की चिरौरी, न सास का इंतज़ार। न भाई-भौजाई मुंह फुलाएंगे और न बहने कटने लगेंगी। जब आप जापा और घर में काम वाली पूरे दिनभर के लिए रख लेंगे। उनकी चिंता भी जायज है कि क्या हमें दफ्तर से छुट्टी लेकर अस्पताल में रूकना होगा? क्या में घर सेवा टहल करना होगा आदि। इन्हीं चिंताओं में उनके फोन आने बंद हो गए। कहीं रात बिरात बुलावा न आ जाएं। यदि उन फोनों को सुनना चाहते हैं, यदि आप चाहते हैं आपसी रिश्ते बने रहें तो रख लीजिए जापे वाली और बता दीजिए सब को डरने की कोई बात नहीं। आईए और मौज कीजिए। मन भर जाए तो घर जाईए।
जापा कहें या दाई कहें, चाइर्ल्ड केयर टेकर कहें नाम पर मत जाईए। नाम में कुछ भी नहीं रखा। बल्कि काम ख़ास है। एक धनी व्यक्ति पाचस से लेकर लाख रुपए में ऐसी दाई व केयर टेकर रखते हैं जो दिन रात जब तक चाहें वह पूरे मनोयोग से बच्चे का ख़याल रखेंगी। आपके साथ विदेश से लेकर देश भ्रमण भी करेगी। नाते-रिश्तेदारों के यहां भी आपके साथ ही डोला करेंगी। गोया आपकी और आपके बच्चे की वही सच्ची रिश्तेदार है। अब देखें करीना कपूर के बच्चे का देखभाल जो स्त्री करती है उसकी माह की सैलरी डेढ लाख से ज़्यादा है। कभी कभी पौने दो लाख भी हो जाता है। परेशान न हों। जिसकी जितनी जे़ेब उसकी वैसी केयर टेकर। पूरे दिन और पूरी रात रहने वाली बच्चियां या औरतें भी मिला करती हैंं जो आपको चैन की नींद मुहैया करा सकती हैं। जेब ढीली करनी पड़ेगी। शायद बीस से तीस हज़ार माह का खर्च कर सकते हैं तो किसी भी नाते-रिश्तेदारों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी किसके पास वक़्त है जो तदन चार दिन आपके घर सेवा टहल या देख भाल करे। आप कौन या किसी के घर रूककर उसकी मदद करने जाते हैं। कहने वाले कह देंगे वो कौन या आए थे?

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