Wednesday, September 19, 2018

प्रतिउत्तर न मिलने की उदासी


कौशलेंद्र प्रपन्न
अब हमें फर्क नहीं पड़ता कि कौन हमसे बात करता है या नहीं करता। हमें इस बात की भी ज़्यादा चिंता नहीं होती कि कौन हमारे घर आना-जाना छोड़ चुका है। हमें तो इसकी भी ख़बर नहीं रहती कि हमारे दोस्त, नाते रिश्तेदार कब से हमारे घर नहीं आए। हमें चिंता इस बात की ज़्यादा होती है कि कौन हमारे फेसबुक पर, ट्वीट्र पर लाइक किया कि नहीं। किसने रिट्वीट किया। किसने फेसबुक पर कमेंट किया और किसने इनोर किया। हम सोशल मीडिया के मूड से गवर्न होने लगे हैं। हम यह नहीं कहते कि हवाओं के रूख़ के संग न बहा जाए। बहना ही जीना है। और जीना ही बहना है। जो रूक गया। जो ठहर गया समझो मर गया।
हमें इसकी चिंता रोज सताती है कि किसने मुझे मेरे पोस्ट पर कमेंट किया और किसने नहीं। हमने तो उसके पोस्ट और फोटो पर खूब सारी बातें लिखी थीं। लिखी थीं कि क्या खूब लग रहे हो। कहां हो आजकल। आदि आदि।
हमें चिंता इस बात की होती है कि और रात भर नींद नहीं आती। गाहे बगाहे नींद खुल जाए तो फेसबुक के पेट में हाथ डाल कर टटोलना नहीं भूलते कि कल रात जो पोस्ट की थी उसे देखने, पसंद करने और कमेंट करने वाले कौन कौन है और कितने हैं?
हमारी आज की मनःस्थिति काफीहद तक इन्हीं सोशल मीडिया के रूख़ से तय हुआ करते हैं। जबकि जानते सभी हैं कि पोलिट्कली करेट रहने के लिए कई बार न चाहते हुए भी हम लाइक कर के आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन यह नहीं जानते कि जिसने लाइक नहीं की वह भी कहीं न कहीं आपका उतना ही पसंद करता है जितना लाइक करने वाला। बेशक उसने आपको वहां पर कमेंट न दिया हो। लेकिन आपकी सराहना हमेशा ही किया करता है।
फर्ज कीजिए आपने किसी को कोई मैसेज भेजे। वह माध्यम कोई भी हो सकता है। आज की तारीख़ में वाट्सएप है जो ज़्यादा ही चलन में है। इसने मैसेज की परंपरा को पीछे छोड़ दिया। शायद फीचर एक बड़ा कारण है। इसमें क्या नहीं भेज सकते? संदेश तो छोटी सी सेवा है। चित्र, आवाज़ और न जाने क्या क्या। यहीं पर पुरानी मैसेज की चौहद्दी शुरू होती है। बहरहाल आपने किसी को संदेश भेजा। आपको मालूम है कि पाने वाला किसी भी संदेश को अनदेखा नहीं करता। बल्कि सरका बेशक दे लेकिन देखता ज़रूर है। वह जब आपके संदेश की प्रतिक्रिया या प्रतिउत्तर न दे तब कैसा महसूस होता है? यदि ज़रा सा भी संवेदनशील हैं तो अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं। अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं। यहीं से संदेश भेजने वाले से हमारी एक रागात्मक उम्मीद बंध जाती है जो टूटती सी नज़र आती है। आप दो ही स्थितियों से गुजरते हैं। पहला, या तो बेशर्म होकर लगातार बिना उम्मीद किए संदेश भेजते रहते हैं और वह पाने वाला भी लगातार आपने संदेश को पीछे सरकाता रहता है। कई बार वह आपके लंबे संजीदे संदेश को अत्यंत लघु कर हम्म्मम!!!! में जवाब दे डालता है। आप उस स्थिति में कैसा महसूस करते हैं? मन तो यही करता होगा कि अब से कोई संवाद नहीं करूंगा। ख़ुद से वायदे भी करते होंगे कि अब से संदेश नहीं भेजूंगा। लेकिन फिर अगली सुबह अपने आप को रोक नहीं पाते और संदेश सरका देते हैं। दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि आपने ठान ली कि अब उस व्यक्ति को संदेश ही नहीं भेजेंगे। और काफी हद तक आप उसपर अमल भी करते हैं। लेकिन पाने वाले पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता। पता नहीं हालांकि एक एकल अनुमान भी हो सकता है। लेकिन अमूमन यही होता है। जिसे आप इतनी शिद्दत से संदेश भेजा करते हैं उसकी नज़र में कोई ख़ास अहम नहीं रहा हो।
बुद्ध ने ठीक ही कहा था- दुख का कारण उम्मीद और अपेक्षा ही है। जब हम किसी और से उम्मीद करते हैं और यह किसी कारण से पूरा नहीं होता तब हम दुखी हो जाते हैं। हमारा मन और दिल दुखता है। लेकिन शायद मनुष्य की यही प्रकृति है वह उम्मीद बहुत जल्द पाल लेता है। और दुखी उसी क्रम में होता रहता है। जबकि यह किसे नहीं मालूम कि एरिया ऑर कंसर्न और एरिया ऑफ इन्फ्यूलेंस दो ऐसी चीजें हैं जिससे हमारा व्यवहार और मनोदशा भी तय हुआ करती हैं। जो हमारे हाथ में नहीं है यानी जो हमारे एरिया ऑफ कंसर्न से बाहर है उसे हम कंट्रोल नहीं कर सकते। क्योंकि उसका व्यवहार किसी और तत्वों और कारणों से प्रभावित और निर्मित हो रहा है। उसमें आपका कोई नियंत्रण नहीं है। हम बस इतना ही कर सकते हैं कि हम अपने व्यवहार को संतुलित कर सकते हैं। हम अपने व्यवहार को नियंत्रित कर सकते हैं ताकि सामने वाले का व्यवहार प्रभावित न हो। लेकिन अफ्सोसनाक स्थिति यही है कि हम अपने व्यवहार और मनोदशा को दूसरे के व्यवहार से नियंत्रित करने लगते हैं। दूसरे की इच्छा, पसंद, नापसंदगी से अपने को चलाने लगते हैं।
मैनेजमेंट का ही एक सिद्धांत है कि जो आपके प्रभाव व कार्यक्षेत्र से बाहर का है जिसपर आपका नियंत्रण नहीं है उसे स्वीकारना ही बेहतर है बजाए कि उसे सुधारने में अपनी क्षमता और ताकत झोंक देने के। क्योंकि आप किसी को प्रेम करने व घृणा करने में आज़ाद है किन्तु दूसरा भी आपसे उतना ही प्रेम करे या नापसंद करे इसका हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता बल्कि हो भी नहीं सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा एरिया ऑफ कंसर्न को यदि दुरुस्त करे लें तो काफी हद तक समस्या का हल निकाल सकते हैं।
बात महज इतनी सी है कि जवाब न मिलने पर हम उदास हो जाते हैं। यह एक मानवीय कमजोरी से ज़्यादा और कुछ नहीं है। यदि जवाब नहीं आया तो उसके कारणों को समझा जाए। क्यों ऐसा हुआ होगा? क्यों कोई आपके संदेश को नज़रअंदाज़ करता है? क्या वह संदेश प्रतिउत्तर की मांग करता है? क्या जवाब देना ज़रूरी है आदि। जब इसके कारणों की जड़ में जाएंगे तो महज ही समझ सकते हैं कि कोई तो ऐसी वज़ह नहीं होगी कि आपके संदेश को तवज्जो नहीं दिया गया। 


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