Tuesday, September 25, 2018

कहानी कहिए ज़नाब, सुनते हैं हम



कहने सुनने को क्या कुछ नहीं है। किसके पास सुनने को कहानी नहीं है! सब के पास एक से बढ़कर एक कहानी है। जॉब से सबंधित। लाइफ से जुड़ी हुई। सोशल मीडिया के दर्द। और न जाने कितनी कहानियां से भरे हुए हैं हम सब। बस एक बार छेड़ कर तो देखिए। बलबला कर कहानियां बहने लगती हैं। याने कहानी जिं़दगी ही कहानियों से बनी है। एक के बाद कहानियां हमारी लाइफ में बनती और प्रसारित होती हैं। कहने वाले कहते हैंं यदि आपके पास कहन है। आपको मालूम है कि कैसे अपनी बात दूसरे को सुननी है, तो हर कोई सुनता है। सुनेगा कैसे नहीं। सुनाने वाला चाहिए। एक ऐसा स्टोरी टेलर जो अपनी बात कहने और सुनने में दक्ष हो। आज की तारीख़ में सुनने वालों की ज़रा सी भी कमी नहीं है। बस यदि आपके पास सुनने का कौशल है तो सुनने वाले तो तैयार बैठे हैं। सोशल मीडिया के बरक्स यदि हम कोई और विकल्प श्रोताओं को मुहैया करा सकें तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता।
हम सोशल मीडिया या फिर अन्य माध्यमों के मार्फत अपनी या फिर दूसरों की कहानियों का आनंद ही तो लिया या दिया करते हैं। कौन कहां गया? क्या खाया? कहां घूम रहा है आदि की जानकारियां लिया और दिया करते हैं। कई बार खुश होते हैं आपनी निजी पलों को और के संग बांटकर तो कई बार जानकर कि कौन क्या कर रहा है? किसकी जिंदगी में अब नए मेहमानों का आगमन हो चुका है आदि। दरअसल मनुष्य एक ऐसा ही जीव है तो खाली नहीं बैठ सकता। या तो अपने अतीत की कहानियां सुनाया करता है या फिर सुनने में दिलचस्पी रखा करता है।
आप कितनी कुशलता के साथ अपनी या औरों की कहानी सुना सकते हैं यह मायने रखता है। इन दिनों कॉर्पोरेट सेक्टर में कहानी सुनाने और कहने वालों की काफी मांग है। ऐसे स्टोरी टेलर जो छोटी छोटी घटनाओं और रेज़मर्रें की जिं़दगी से जुड़ी घटनाओं के तार को जोड़कर मैनेजमेंट के औज़ारों से रू ब रू कराया करते हैं। एक मैनेजर कैसे अपनी टीम के साथ बरताव करे, कैसे प्रोजेक्ट को सफल बनाए आदि सैद्धांतिक चीजों को स्टोरी के ज़रिए साझा किया करते हैं। एक एक सेशन के चार्ज कम से कम दस हज़ार हुआ करती हैं। उनमें क्या ख़ास बात है? यदि कुछ ख़ास है तो क्या हम स्टोरी टेलिंग के कौशल नहीं सीख सकते? एक सवाल यह भी है इन कहानियों में होता क्या है? कहानियों में हमारा जीवन दर्शन और लाइफ के उतर-चढ़ ही तो दर्ज हुआ करती हैं। फलां के जीवन में ऐसा हुआ तो उसने कैसी कैसी तरकीबें अपनाई और उस स्थिति से बाहर हो गया। हमें उन कहानियों कई बार रास्ते और उम्मींद की रोशनी मिला करती है।
दरअसल हम कहानियों से ज़्यादा समझा करते हैं बजाय कि सिद्धांत के। सिद्धांततः तो बहुत सी चीजें सुना और दूसरे कान से निकाल दिया करते हैं। लेकिन जब दादी नानी या दोस्त कहानियां सुनाया करते हैं तब हमारी दिलचस्पी बढ़ जाती है। क्योंकि यहां पर कहन पर काफी कुछ निर्भर करता है कि कौन किस स्तर का और कितनी दिलचस्पी लेकर आपबीती या दूसरों पर गुजरी बातें बता रहा है। गली मुहल्ले में ऐसी औरतें या पुरूष हुआ करते हैं जिनके पास कहने का कौशल होता है और दिन भर इधर उधर की कहानियां सुनाया करते हैं। लेकिन हमें यहां एक अंतर या रेखा खींचकर ही समझना होगा कि कहानी कहने और निंदारस लेने व देनें में बुनियादी अंतर हुआ करता है। जैसा कि ऊपर जिक्र किया गया कि कॉर्पोरेट सेक्टर में कहानी के ज़रिए बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी घटनाओं और बातों को लोगों तक पहुंचाई जाती हैं। मैनेजमेंट की क्लासेज में भी केस स्टडी मुहैया कराई जाती हैं। बताया जाता है कि फलां कंपनी में फलां कर्मचारी काम करते हैं। वहां पर लोग छुट्टियां ज्यादा करते हैं। ऐसे में एक मैनेजर के तौर पर आप उसे कैसे हैंडल करेंगे। दूसरा उदाहरण यह भी हो सकता है कि फलां कंपनी पिछले दो तीन सालों से घाटे में जा रही थी। प्रोडक्शन समय पर नहीं हो रहा था। लेकिन जब नए मैनेजर व लीडर को नियुक्त किया गया तो उन्होंने कंपनी को छह माह में ही कमियों से निकाल कर सारी चीजें समय पर और लक्ष्य के अनुसार चलाने में सक्षम हो सके। इस प्रकार कह कहानी जिसे हम केस स्टडी का नाम दे सकते हैं। मैनेजमेंट के नए नए छात्र इन्हें पढ़ा करते हैं। और देखा करते हैं कि कैसे व्यवहार में सिद्धांत को उतारा जाए।
सिद्धांतों को व्यवहार में कैसे ढाला जाया व कैसे एक सफल लीडर ने सिद्धांतों को व्यवहार में लाकर कंपनी व संस्था को नई ऊंचाई तक ले जाने में सफल हुआ उनकी कहानी सुन और पढ़कर हम जल्द सीखा करते हैं। यह अलग विमर्श का मुद्दा हो सकता है कि हमारी सोशलाइजेशन कई बार सिद्धांतों और व्याकरणों से ही हुई हैं। उसमें स्कूल, पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें काफी हद तक एक रूढ़ परंपरा को ही पोषित करती हैं। जबकि मैनेजमेंट में हर चीज को टेस्ट कर और व्यवहार में कैसे इस्तमाल कर सत्यापित किया जाए आदि चीजें होती हैं। शायद इसलिए भी एक सफल लीडर व मैंनेजर की वज़ह से कंपनी व संस्था नई नई ऊंचाइयां हासिल किया करती हैं। हमें समझना यह है कि नए लीडर में यदि दृष्टि और विज़न को पूरा करने की रणनीति- निर्माण से लेकर एक्जीक्यूट करने की क्षमता एवं कौशल है तो यह किसी भी प्रोजेक्ट को विकास के राह पर दौड़ा सकता है। यह एक कहानी है। इस कहानी को कंपनियां अपने अन्य कर्मचारियों के बीच साझा किया करते हैं। यही कहानी जब एक प्रोफेशनल स्टोरी टेलर उठाता है तो उसके साथ उसका बरताव बिल्कुल अगल होता है। यहां जब हम स्टोरी व कहानी की बात कर रहे हैं तो वह एक अकादमिक कथाकार, उपन्यासकार की कहानी की एक ज़रा हट कर कहानी की बात हो रही है। ऐसी कहानी तो कई बार कथाकार की नजर से भी फिसल जाती हैं। ऐसी कहानियों को हम केस स्टडी भी कह सकते हैं।



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