Friday, September 21, 2018

सफाई करते मरना.... वो भी विकास के महानगर में



कौशलेंद्र प्रपन्न
वेद के मंत्रों में वर्णव्यवस्था के बारे में एक मंत्र में ‘‘ब्राह्मणस्य मुखमआश्रित, बाहु राजन्यकृत। उरूतदस्य यद वैश्वयः तद्भ्याम शुद्रो अजायत।।’’ इस में कहां  गया है कि समाज में चार वर्ण हैं जो अपने अपने कर्मों व भाग्य की वजह से विभक्त हैं। ब्राह्म्ण सिर के समान। बाजू के समान क्षत्रिय, वैश्विय उदर के समान और पांव के समान शुद्र। हालांकि इस मंख् की भी काफी आलोचनाएं हुईं। साथ ही मनु के सिद्धांतों को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा है। जो भी हो गांधी जी की नजर में जो समाज के नीचले पायदान पर हैं उन्हें भी समाज में विकास के साथ दौड़ने और कदम से कदम मिला कर चलने का अधिकार है।
हाल में दिल्ली में मेन हॉल में उतरे एक सफाई कर्मचारी की मौत हो गई। इस तरह से दिल्ली में पिछले एक सप्ताह में छह मौतें हो चुकी हैं। आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल ऐसे सफाई कर्मचारियों की मौतें तकरीबन 300 थीं। जो नाले, मेन हॉल में उतरने के बाद मौत के शिकार हुए। वजहें बताते हैं कि दम घुटने, पर्याप्त जीवन रक्षक संसाधन की कमी से कर्मचारी को अपनी जान गंवानी पड़ी।
रमन मैग्सासे सम्मान से सम्मानित बिजवॉड विल्सन से मिलने और इस मसले पर चर्चा करने का अवसर मिला। इनसे बातचीत में कई बातें स्पष्ट हुईं कि भारत में तकनीक के प्रयोग से काफी हद तक मौतों को रोका जा सकता है। पहली बात तो यही कि मानवीय स्तर पर मेन हॉल में उतरने और सफाई से बचा जा सकता है। आज तकनीक का समय है और हमें यदि ज़रूरी ही हो तो नए नए तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं।

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