Thursday, September 6, 2018

मंच पर बैठे थे जी और बाकी इत्यादि थे



कौशलेंद्र प्रपन्न
मंच पर देखा बैठे थे सारे के सारे जी। जी की संख्या कुछ ज़्यादा ही थी। यही कोई बीस पचीस होंगे। सारे जी बिल्ला धारी थे। बिल्ले से मालूम चलता था कितने प्रसिद्ध हैं वे। सबको पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया। जो बच गए उसका मुंह न उतर जाए इसलिए बीच बीच में को एक प्रमुख जी थे वो उद्घोषक को याद दिला देते है कि फलां जी को भी बुके देने हैं। उन्हें भी सम्मानित किया जाना है। और इस तरह से मंच पर बिराजे सभी जी एक एक कर बुके से सम्मानित हो रहे थे। उन सभी जी के बीच में बैठे थे दो इत्यादि। जिनके लिए यह समारोह था वही मंच से एक सिरे से नदारत थे। यह कोई एक या किसी ख़ास कार्यक्रम का मंज़र न होकर किसी भी कार्यक्रम पर देख सकते हैं। इसलिए चौंकरने की बात नहीं है। भीड़ में कुछ ही जी होते हैं बाकी के इत्यादि की भूमिका होते हैं। किसी भी जी की नाक न नीची हो या सम्मान में कमी हो इसका ख़्याल रखना होता है प्रोग्राम के प्रमुख को। नहीं तो पता नहीं किस जी जी की भावना आहत हो जाए आप अनुमान तब नहीं लगा सकते। बल्कि उसका असर आगामी कार्यक्रम में देखने को मिलता है। वो बहाने बना कर आपके कार्यक्रम से दूरी बना लेते हैं। यदि स्पष्टवादी हुए तो मुंह पर बोल देने से भी गुरेज नहीं करेंगे। कि आपके यहां तो उचित सम्मान भी नहीं मिलता। सो कार्यक्रम प्रमुख की नज़र जी पर होती है न इत्यादि पर।
ख़्याल रहे कि जी हमारे प्रमुख हुआ करते हैं। उनकी भावना आहत हुई नहीं है उसका ख़ामियाजा आपको ही भुगतना होगा। वह किसी भी रूप में हो सकता है। तज़र्बा तो यही कहते है कि जी की भावना आहत न हो इसको गांठ बांध लें। एक बार के लिए इत्यादि की भावना को सहला कर मना भी सकते किन्तु जी को ठेस न पहुंचे।
एक प्रसिद्ध कवि की कविता ही है बाकी सब इत्यादि थे। भीड़ में कुछ ही लोगों के नाम लिए जाते हैं। बाकी को इत्यादि के तौर पर नाम भर गिना दिया जाता है। फलां थे फलां थे बाकी इत्यादि थे। यानी वो भी आए थे। वो भी थे इस कार्यक्रम में। बाकी की गिनती इत्यादि में कर दी जाती है। इत्यादियों की संख्या में भी कम महत्वपूर्ण नहीं होती लेकिन इनकी गिनती भी जी में नहीं की जाती।
दूसरे शब्दों में कहें तो जी कई किस्म के होते हैं। साधारण शब्दों में समझें- कहीं का कोई प्रतिनिधि, किसी का मानित सदस्य, किसी के द्वारा नामित व्यक्ति, किसी राजनीतिक दल का प्रमुख आदि। इन्हें आप चाह कर भी नज़रअंदाज नहीं कर सकते। करने की सोच भी नहीं सकते। कुछ देर के लिए इत्यादियों को नज़रअंदाज कर सकते हैं। लेकिन जी को नहीं।


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