Tuesday, October 31, 2017

इंदिरा गईं मगर लोगों के घर भर गए



कौशलेंद्र प्रपन्न
सन् 1984। स्थान हरिद्वार। अक्टूबर का महीना। एकतीस तारीख। सच में इतिहास में दर्ज हो गया। इंदिरा गांधी की हत्या इसी तारीख को हुई थी। उसके बाद का मंजर सभी को मालूम है।
पूरे देश भर में लूटपाट, आगजनी, हत्या का खेल बड़े पैमाने में खेला गया। तब मैं शायद कक्षा पांचवीं में पढ़ा करता था।
हरिद्वार के गुरुद्वारे से सिखों को खींच खींच कर बाहर निकाल कर जलाएं जा रहे थे। जो भी हाथ लगता उसकी गर्दन में टायर डाल कर जलाया जा रहा था।
गंगा में सिखों की दुकानें लूट और जला कर सामान फेंके जा रहे थे। यह सारी लूट पाट मेरी भी आंखों के सामने घट रही थी।
रेलगाड़ियां सिखों की लाशों से पटी हुई थीं। दुकानें तो ऐसे लूटी जा रही थीं गोया उन्हीं ने इंदिरा जी की हत्या की हो।
मगर एकबात तो साबित हुआ कि इंदिरा जी की हत्या से ज्यादा लोगों ने अपनी घरें सामनों से भर लीं। क्या टीवी क्या फ्रीज घरों में सामान रखनी की जगह कम पड़ गई। बच्चा तो बच्चा बुढ़े भी घर भरने में लगे थे।

2 comments:

Unknown said...

एकदम सत्य
आज भी सब कुछ आंखों के सामने घटित होता प्रतीत होता है।

Unknown said...

ऐसा समय कुछ लोगों की असली तस्वीर सामने ले आता है !!!

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